पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/२७७

एतत् पृष्ठम् परिष्कृतम् अस्ति

(२७० ) नारदसंहिता । मघ्याह्नतक निरघात होय तो ब्राह्मणोंको तथा राजद्वारमें नौकर रहनेवाले जनोंको अशुभ है, तीसरे प्रहरमें होयतो वैश्योंको तथा जलचरजीवोंको अशुभ है दिनके चैौथे प्रहरमें धनका नाश करे सायंकालमें नीचजातियोंको अशुभ है रात्रिके प्रथम प्रहरमें खेतीकी हानि हो दूसरे प्रहरमें पिशाचोंको नष्ट करें ॥ ३ ॥ ४ ॥ हंत्यर्द्धरात्रे तुरगांस्तृतीये शिल्पिलेखकान् ॥ चतुर्थयामे निर्घातः पतन् हंति तदा जनान् ॥५॥ आधीरात समय घोडोंको नष्ट करै, रात्रिके तीसरे प्रहरमें शिल्पी तथा लेखक जनको नष्ट करै, रात्रिके चौथे अहमें पडाहुआ निर्घात ( बिजली ) सब जनोंको नष्ट करता है । ५॥ भीषज़र्जरशब्दः स तत्रतत्र दिगीश्वरम् ॥ ६ ॥ इति श्रीनारदीयसंहितायां निर्घातलक्षणाध्या योऽष्टचत्वारिंशत्तमः ॥ ४८ ॥ वह निर्धात अर्थात् बिजलीका पड़ना जो भयंकर जर्जरशब्द करे तो जिस दिशामें पडे उसीदिशाके राजाको नष्ट करे ।। ६ ।। इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां निर्घातलक्षणा ध्यायोऽष्टचत्वारिंशत्तमः।। ४८ ।। दिग्दाहः पीतवर्णश्चेक्षितीशानां भयप्रदः ॥ देशनाशायाग्निवर्णाऽरुणवर्णाऽनिलप्रदः ॥ १ ॥ पीतवर्णा दिग्दाह होवे तो राजाओंको भय करे, अग्निसमान वर्ण हो तो देशका नाश करे, लालवर्ण हो तो वायु चलावे ऐसे यह दि