पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/२८०

एतत् पृष्ठम् परिष्कृतम् अस्ति

भाषाटीकास ०-अ० ५०. ( २७३ )

तथा तीनदिन तक अत्यंत उग्रवायु चले और एकरात्रितक निरंतर धूलचढी रहे तो राजको नष्ट करे ।। ३ ॥ ४ ॥ परचक्रागमं न स्याद्विरात्रं सततं यदि । क्षामडामरमातंकस्त्रिरात्रं सततं यदि ॥ ४ ॥ दो रात्रितक निरंतर धूल चढी रहे तो परचक्रागमन नहीं होता और तीन रात्रितक धूल बनी रहेको दुष्ट डाकू जनोंका प्रजामें भय हो, रोग हो ॥ ५ ।। ईतिदुर्भिक्षमतुलं यदि रात्रचतुष्टयम् ॥ निरंतरं पंचरात्रं महाराजविनाशनम् ॥ ६ ॥ चार रात्रितक रहेको टीडी आदि ईंति तथा दुर्भिक्षक अर्यंत भय हो निरंतर पांचरात्रितक हो तो महाराजाको नष्टकरे ॥ ६ ॥ ऋतावन्यत्र शिशिरात्संपूर्णफलदं रजः ॥ ७ ॥ इति श्रीनारदीयसंहितायां रजोलक्षणाध्यायः पंचाशत्तमः ॥ ६० ॥ शिशिरऋतुके बिनां अन्यऋतुकी रज (अंधी) चलना पूराफल करती है अर्थव शिशिरऋतुमें अंधी चननेका (ज्यादेपवनचलनेका ) कुछ दोष नहीं ॥ ७ ॥ इति श्रीनारदीयसहिताभाषाटीकायां रजोलक्षणाध्यायः पंचशत्तमः ।। ५० ॥ Ra भूभारखिन्ननागेंद्रदीर्घनिःश्वससंभवः । भूकंपः सोपि जगतामशुभाय भवेत्तदा ॥ १ ॥ १८