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( २७४ ) नारदसंहिता। पृथ्वीके भारसे खिन्नहुए शेषनागके ऊंचे श्वास लेनेसे भूकंप अर्थात् भूमिकांपना भौंचाल होता है वह संसारको अशुभ फलदायी है ॥ १ ॥ यामक्रमेण भूकंपो द्विजातीनाभनिष्टदः ॥ अनिष्टदो क्षितीशानां संध्ययोरुभयोरपि ॥ २॥ प्रहरके क्रमसे भूकंप, द्विजातियोंको अशुभफल देता है जैसे दिनके प्रथमप्रहरमें ब्राह्मणोंको अशुभ, २ प्रहरमें क्षत्रियोंको, ३ में वैश्यको और चौथे प्रहरमें शूद्रोंके अशुभ जानना और दोनों संधियोंमें भूकंप होय तो राजाओंको अशुभ है ॥ २ ॥ अर्यमाद्यानि चत्वारि दस्रेंद्वदितिभानि च । वायव्यमंडलं त्वेतदस्मिन्कंपो भवेद्यदि ॥ ३ ॥ और उत्तराफल्गुनी आदि चारनक्षत्र, अश्विनी, मृगशिर, पुनर्वसु इन नक्षत्रकी वायव्यमंडल संज्ञाहै इसमें भूकंप होय तो ॥३॥ नृपसस्यवाणिग्वेश्याशिल्पवृष्टिविनाशदः ॥ पुष्यद्विदैवभरणी पितृभाग्यानलाऽजपात् ॥ ४॥ खेती राजा, वैश्य, वेश्या, कारीगर, वर्षा इन्होंका नाश हो और पुष्य, विशाखा, भरणी,मघा, पूर्वफाल्गुनी, कृत्तिका, पूर्वा- भाद्रपद ॥ ४ ।। आग्नेयमंडलं त्वेतदस्मिन्कृपो भवेद्यदि ॥ नृपवृष्टयर्धनाशाय इतिशांबरटंकणान् ॥ ५॥ यह इन नक्षत्रोंका अभिमंडल कहाताहै इसमें भूकंप हो तो राजाका नाश हो वर्षा नहीं हो भाव महँगा रहे शांभरनमक, सुहागा इत्यादि वस्तु महँगी रहें ।। ५ ॥