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(२७६ ) नारदसंहिता । ' और रज अर्थात् अंधी चलने तथा अन्यवस्तुका उत्पात पांचमहीनोंमें फल करताहै ॥ १० ॥ इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां भूकंपलक्षणा ध्याय एकपंचाशत्तमः ॥ ५१ ॥ अथ नक्षत्रजातफलम्। सुरूपः सुभगो रूक्षो मतिमान्भूषणप्रियः ॥ अंगनावल्लभः शूरो यो जातश्चाश्विभे नरः ॥ १ ॥ सुंदर रूपवान, सुंदरऐश्वर्यवान्, रूक्षवर्ण, बुद्धिमान्, आभूषण प्रिय, स्त्रियोंका प्रिय, शूरवीर, ऐसा मनुष्य अश्विनीनक्षत्रमें जन्मनेसे होता है । १ ।। कामोपचारकुशलः सत्यवादी दृढव्रतः॥ अरोगः सुभगो जातो भरण्यां लघुभुक्मुखी ॥ २॥ कामशास्त्रमें निपुण, सत्यबोलने वाला, दृढ़नियमवाला, रोगर हित, सुंदर ऐश्वर्यवान्, हलका भोजन करनेवाला, सुखी ऐसा मनुष्य भरणीमें जन्मनेसे होता है ॥ २ ॥ तेजस्वी मतिमान्दाता बहुभुक्प्रमदाप्रियः । गंभीरः कुशलो मनी वह्निक्षत्रजः शुचिः ॥ ३ ॥ तेजस्वी, बुद्धिमान्, दाता, बहुत भोजन करनेवाला, स्रियोंसे प्यार रखनेवाला, गंभीर, चतुर, मानी, ऐसा पुरुष कृतिका नक्षत्रमें जन्मनेसे होता है ॥ ३ ॥