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भाषाटीकास ०-अ० ५२.’ ( २७७ ) सुरूपः स्थिरधीर्मानी भोगवान्सुरतप्रियः । प्रियवाक्चतुरो दक्षस्तेजस्वी ब्रह्मधिष्ण्यजः ॥ ४ ॥ और सुंदररूपवान्, स्थिरबुद्धिवाला,मानी, भोगवान्, मैथुन प्रिय, प्रियबोलनेमें चतुर, सबकामोंमें निपुण, तेजस्वी ऐसा पुरुष रोहिणीमें जन्मनेसे होता है ॥ ४ ॥ उत्साही चपलो भीरुर्धनी सामप्रियः शुचिः । आगमज्ञः प्रभुर्विद्वानिंदुनक्षत्रजः सदा ॥९॥ और मृगशिरमें जन्मनेवाला मनुष्य चपल, उत्साहवाला, डर पोक, धनी, साम ( समझना ) में प्रिय, पवित्र, शाखको जानने वाला,प्रभु, विद्वान् होता है ॥ ५ ॥ अविचारपरः कूरः क्रयविक्रयनैपुणः॥ गवि हिंस्रश्चंडकोपी कृतघ्नः शिवधिष्ण्यजः ॥ ६ ॥ और आर्द्रा नक्षत्रमें जन्मनेवाला पुरुष विचारवान् नहीं होता कूर तथा खरीदने बेचनेके व्यवहारमें निपुण, हिंसा करनेवाला, प्रचंड कोपवाला,कृतघ्न पुरुष होता है ॥ ६ ॥ दुर्मेधा वा दर्शनीयः परस्त्रीकार्यनैपुणः । सहिष्णुरत्यसंतुष्टः शीघ्रगोदितिधिष्ण्यजः॥ ७ ॥ पुनर्वसुमें जन्मनेवाला जन खराब बुद्धिवाला,दर्शनीय, परस्त्रिके कार्यंमें निपुण, सहनेवाला, संतोष रहित, शीघ्रगमन करने वाला होता है ॥ ७ ॥ पंडितः सुभगः शूरः कृपालुधार्मिको धनी ॥ कलाभिज्ञः सत्यवादी कामी पुष्यर्क्षजो लघुः ॥ ८ ॥