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भाषाटीकास ०.-अ० ५३ . (२८३ ) विंध्याचल और गोदावरीके मध्यमें शनिकी भमि जानना विंध्या चल और गंगाजीके मध्यमें जो भूमि है वह बुधकी जाननी ॥३॥ या वेण्यालंकयोर्मध्ये धरात्मजवसुंधरा ॥ समुद्भयंत्रितक्षोणीनाथौ सूर्यहिमद्युती ॥ ४ ॥ और वेणी नदी तथा लंकाके मध्यमें मंगलकी भूमि जानना और समुद्रके पास की भूमिके मालिक सूर्य चंद्रमा कहे हैं ।। ४ ॥ इषमासि चतुर्दश्यामिंदुक्षयतिथावपि । ऊर्जादौ स्वातिसंयुक्ते तदा दीपावली भवेत् ॥ ५॥ अश्विन वदि चतुर्दशी अथवा अमावास्याको और कार्त्तिककी चतुर्दशी तथा दीपमालिकाको ।। ५॥ तैले लक्ष्मीर्जले गंगा दीपावल्यां तिथौ भवेत् ॥ अलक्ष्मीपरिहारार्थमभ्यंगस्नानमाचरेत् ॥ ६ ॥ तैलमें लक्ष्मी और जलमें गंगाजी रहती है इसलिये दीपमालि काके दिन अलक्ष्मी ( दरिद्र ) दूरहोनेके वास्ते तेल लगाकर स्नान करना चाहिये ॥ ६ ॥ इंदुक्षये च संक्रांतौ वारे पाते दिनक्षये ॥ तत्राभ्यंगे ह्यदोषाय प्रातः पापापनुत्तये ॥ ७ ॥ अमावास्या तथा संक्रांतिके दिन व्यतीपातके दिन तिथि क्षयके दिन प्रातःकाल तेललगाकर स्नानकरे तो संपूर्ण पाप दूर होवें ।। ७॥