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भाषाटीकाप्त ०-अ० ५३. ( २८) नक्तव्रतेषु सा ग्राह्या प्रदोषव्यापिनी तिथिः ॥ पूजाव्रतेषु सर्वेषु मध्याह्नव्यापिनी स्मृता ॥ १३ ॥ वह तिथि रात्रिके व्रतोंमें प्रदोषव्यापिनी ग्रहण की है और संपूर्ण पूजा व्रतोंमें तो मध्याह्नव्यापिनी कही है ॥ १३ ॥ एकभुक्तोपवासेषु या विंशघटिकात्मिका ॥ पिष्टान्नप्राशनेष्वेव लवणाम्लविवर्जिता ॥ १४॥ एक भुक्तोपवास अर्थात् एकवार भोजन करनेके व्रतोंमें वीस २० घडीतक रहनेवाली तिथि गृहीत है पीठीके पदार्थ खानेमें नमक खटाईका त्याग करनेमें भी बीसघडी इष्टतक रहनेवाली तिथि ग्राह्य है। १४ ॥ आषाढसितपंचम्यामसंप्राश्य उपोषितः ॥ अर्चयेत्षण्मुखं देवमृणरोगविमुक्तये ॥ १९ ॥ आषाढ सुदी पंचमीको भोजन नहीं करना, उपवास व्रतकरके षण्मुखदेख स्वामिकार्त्तिकजीका पूजन करनेसे ऋण और रोग दूर होता है ॥ १५ ॥ तथैव श्रावणे शुक्लपंचम्यां नागपूजनम् ॥ पयःप्रदानं सर्पेभ्यो भयरोगविमुक्तये ॥ १६ ॥ तैसेही श्रावणशुक्ल पंचमीको नागपूजन होता है उसदिन रोग । दूर होनेके वास्ते सर्पोको दूध पिलाना चाहिये ॥ १६ ॥ मासि भाद्रपदे शुक्लचतुर्थ्यां गणनायकम् ॥ पूजयेन्मोदकाहारैः सर्वविघ्नोपशांतये ॥ १७ ॥