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( २८६) नारदसंहिता । भाद्रपद शुक्ला चतुर्थीको गणेशजीका पूजन करना और लड्डुवोमे पूजन करना तथा लड्डुवोंका भोजन करना ऐसे करनेसे संपूर्णविघ्नोंकी शांति होती है ।। १७ ।। माघशुक्ले च सप्तम्यां योर्चयेद्भास्करं नरः ॥ आरोग्यं श्रियमाप्नोति घृतपायसभक्षणैः ॥ १८॥ माघशुक्ला सप्तमीको जो पुरुष सूर्यका पूजन करता है और घृत तथा खीरका भोजन करता है वह आरोग्य ( खुशी ) रहता है १८॥ व्यंजनोपानहौ छत्रं दध्यमन्नकपात्रिकाम्॥ वैशाखे विप्रमुख्येभ्यो धर्मप्रीत्यै प्रयच्छति ॥ १९ ॥ कनकांदोलिकाछत्रचामैरैः स्वर्णभूषितैः॥ सह दिव्यान्नपानाभ्यां दत्वा स्वर्गमवाप्नुयात् ॥ २० ॥ और जो पुरुष धर्महेतु वैशाखमहीनेमें बीजना जूती जोडा छत्री, दही, अन्न, थाली इन्होंका दान श्रेष्ठब्राह्मणोंके वास्ते देता है और सुवर्ण,पालकी, छत्र, चमर, सुवर्णके आभूषण, दिव्य अन्नपान,दान करता है वह स्वर्गमें प्राप्त होता है ॥ १९ ॥ २० ॥ आश्वयुङ्मासि शुक्लायां नवम्यां भक्तोतोर्चयेत् ॥ लक्ष्मीं सरस्वतीं शस्त्रान्विजयी धनवान्भवेत् ॥ २१ ॥ आश्विनशुक्ला नवमीको भक्तिसे लक्ष्मी, सरस्वती, शस्त्र इन्होंका पूजनकरनेवाला पुरुष विजयी तथा धनवान होता है । २१ ।। कार्तिक्यामथ वैशाख्यामुपोष्य वृषमुत्सृजेत् ॥ शिवप्रीत्यै भक्तियुतः स नरः स्वर्गभाग्भवेत् ॥२२॥