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( २९० ) नारदसंहिता। माताको, दोनों संधियोंमें अपने आत्माको नष्ट करे ऐसे गंडांत नक्षत्रमें जन्माहुआ बालक निर्दोष नहीं है ॥ ३५॥ यो ज्येष्ठामूलयोरंतरालप्रहरजः शिशुः ॥ अभुक्तमूलजः सार्पमघानक्षत्रयोरपि ॥ ३६ ॥ जो बालक ज्येष्ठा और मूलनक्षत्रके मध्यके प्रहरोंमें जन्मता है। और जो आश्लेषा तथा मघाके मध्यके प्रहरमें जन्मता है वह अभुक्त मूलज कहा है ॥ ३६ ॥ विधेयं शांतिकं तत्र गंडे दोषापनुत्तये । अरिष्टं शतधा याति सुकृते शांतिकर्मणि ॥ ३७ ॥ तहां गंडांत नक्षत्रमें जन्मनेकी शांति करनी चाहिये शांतिकर्म सुकृतकरनेसे अरिष्ट ( पीडा ) सैंकडों प्रकारसे दूर होता है।।३७ तस्माच्छांतिं प्रकुर्वीत प्रयत्नाद्विधिपूर्वकम् ॥ वसरात्पितरं हंति मातरं तु त्रिवर्षतः ॥ ३८ ॥ इसलिये यत्नसे विधिपूर्वक शांति करवानी चाहिये और शांति नहीं की जाय तो गंडांत नक्षत्र पिताको एकवर्षमें नष्टकरे और माताको तीनवर्षमें नष्टकरे ।। ३८ ।। धनं वर्षद्वये चैव श्वशुरं नववर्षके । जातं बालं वत्सरेण वर्षैः पंचभिरग्रजम् ॥ ३९ ॥ धनको दोवर्षमें, श्वशुरको नववर्षमें नष्टकरे और जन्मे हुए उस बालकको एकवर्षमें औरं बालकके बडेभाईको पांचवर्षमें iष्टकरं ३९ ।।