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भाषाटीकास ०-अ० २. ( २३ ) बृहस्पतिका तारा पीला, अग्नि समान, श्याम, हरित, लालवर्ण होय तो यथाक्रमसे प्रजामें रोग, अग्निभय, युद्ध, चोर, शस्त्रभय होता है ।। १६ ।। अनावृष्टिर्धूम्रनिभः करोति सुरपूजितः । दिवा दृष्टो नृपवधस्त्वथवा राज्यनाशनम् ॥ १७॥ धूमांसरीखा वर्ण होय तो वर्षा नहीं हो, दिनमें दर्शन होय तो राजाका नाश हो अथवा राज्य नष्टहो ।। १७॥ संवत्सरशरीरः स्यात् कृत्तिकारोहिणी उभे ॥ नाभिस्त्वाषाढद्वितयमार्द्रा हृत्कुसुमं मघा ॥ १८ ॥ कृत्तिका रोहिणी ये दो नक्षत्र संवत्सरका शरीर हैं, पूर्वाषाढा उत्तराषाढा नाभि है, आर्द्रा हृदय, मघा पुष्प है ॥ १८ ।। दुर्भिक्षाग्निमहद्भितिः शरीरं क्रूरपीडिते ॥ नाभ्यां तु क्षुद्भयं पुष्पे सम्यक् मूलफलक्षयम् ॥ १९ ॥ शरीरके नक्षत्र अर्थात् कृत्तिका रोहिणी ये नक्षत्र क्रूर ग्रहोंकरके पीडित होवें तो दुर्भिक्ष हो अग्निभय और महान क्षय हो नाभिके नक्षत्र कूरग्रहोंसे पीड़ित हो तो दुर्भिक्ष हो पुष्प पीडित हो तो मूल फलोंका नाशहो ॥ । १९ ।। हृदये सस्यनिधनं शुभं स्यात् पीडितः शुभैः । । मेषराशिगते जीवे त्वीतिर्मेषविनाशनम् ॥ २०॥ हृदयके नक्षत्र पीडित होवें तो खेती नाशहो और इसी प्रकार ये सब अंग शुभ ग्रहोंसे पीडित होवें तो शुभ फल हो मेष