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भाषाटीकास०-अ० ५५.. (२९९ ) नक्षत्रत्रिपुष्करयोग, रोहिणी व मघा नक्षत्रमें सपिंडी आदि श्राद्ध नहीं करना चाहिये परंतु महालय श्राद्ध अर्थात् कनागतोंमें पार्वण श्राद्ध तो करदेना चाहिये अन्यसम्पूर्ण न्यूनश्राद्धोंमें । ८॥ ९॥ अतीतविषये चैव ह्यैतत्सर्वं विचिंतयेत् ॥ नभस्यमासे संप्राप्ते कृष्णपक्षे समागते ॥ १० ॥ साधरण कामनावाले श्राद्धोंमें यह पूर्वोक्त मुहूर्तविषय विचार लेना चाहिये भाद्रपद महीनेमें कृष्णपक्षमे ।। १० ।। । तत्र श्राद्धं प्रकुर्वीत सकृद्ध चेदशक्तिमान् । विशिष्टदिवसे कर्तुश्चंद्रताराबलान्विते ॥ ११ ॥ एकवार तो निर्धन पुरुषने भी श्राद्ध करना चाहिये और अन्य शुभमुहूर्तके दिन करनेवालेको चंद्रेमा तथा ताराका पूर्ण बल होय तब श्राद्ध करना चाहिये ।। ११ ॥ नंदाश्च तिथयो निंद्या भूतायां शस्त्रघातिनाम् ॥ द्वितीया मध्यमा ज्ञेया तृतीया भरणीयुता ॥ १२॥ नंदातिथियोंको वर्जदेवे और चतुर्दशीके शस्त्रघातसे मरने बालोंका श्राद्ध करना चाहिये । द्वितीया मध्यम तिथि है और भरणीनक्षत्र युक्त तृतीया ।। १२॥ पूज्या यदि चतुर्थी वा श्रीप्रदा पितृकर्मणि । आनंदयोगः पंचम्यां याम्यर्क्षस्थे निशाकरे ॥ १३ ॥ अथवा चतुर्थी श्रेष्ठ है पितृकर्ममें लक्ष्मीदेनेवाली है पंच मीको चंद्रमा भरणीनक्षत्रपर हो तो पितृकर्ममें आनंदयोग जानना १३