पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/३०८

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भाषाटीकास ०–अ० ५५. ( ३०१ ) अर्चयेद्यः पितृंस्तत्र नित्यं तृप्तास्तु तस्य ते । सर्वसंपत्प्रदाःकर्तुर्द्वाद्दशी तिथिरुत्तमा ॥ १८॥ इस योगमें जो पितरोंका पूजन करताहैं उसके पितर नित्य तृप्त रहतेहैं। और कर्ता यजमानको संपूर्ण संपत्ति देनेवाली उत्तम द्वादशी तिथि कहीहै ।।१८।। त्रयोदश्यां चतुर्दश्यां हानिर्धनकलत्रयोः ॥ अनंतपुण्यफलदा गजच्छाया त्रयोदशी ॥ १९ ॥ त्रयोदशी वा चतुर्दशीको श्राद्ध करे तो धन स्त्रिकी हानि हो परंतु गजच्छाया योगवाली त्रयोदशी अनंत पुण्यफल देनेवाली है ।। १९ ।। श्राद्धकर्मण्यमावास्या पक्षश्राद्धफलप्रदा ॥ २० ॥ आद्धकर्ममें अमावस्या तिथि पक्षका फल देती है अर्थात् १५ दिनतक श्राद्ध करनेका पुण्य होता है ॥ २० ॥ पौष्णद्वये पुष्यचतुष्टये च हस्तत्रये मैत्रचतुष्टये च॥ सौम्यद्वये च श्रवणत्रये च श्राद्धप्रदाता बहुपुत्रवान्स्यात्२१ इति श्रीनारदीयसंहितायां श्राद्धलक्षणाध्यायः पंचपंचाशत्तमः ॥ ३६ ॥ और रेवती, अश्विनी, पुष्प, आदि चार नक्षत्र हस्त आदि ३ नक्षत्र अनुराधा आदि चार नक्षत्र, और मृगशिर आदि दो नक्षत्र