पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/३१

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(२४ ) नारदसंहिता। राशिपर बृहस्पति होय तो टीडीआदि ईतिभय तथा मेंढाओंका नाश हो ।। ३० ॥ सस्यवृद्धिः प्रजारोग्यं वृष्टिः कर्षकसंमता ॥ वृषराशिगते जीवे शिशुस्त्रीपशुनाशनम् ॥ मध्या वृष्टिः सस्यहानिर्नृपाणां समरं महत् ॥ २१ ॥ खेतीकी वृद्धि प्रजामें कुशल रहै * किसान लोगोंके मनकी माफिक वर्षा हो वृषराशिपर वृहस्पति होय तो बालक स्त्री पशु इन्होंका नाशहो मध्यम वर्षा हो खेतीकी हानि राजाओंका महान युद्ध हो ॥ २१ ॥ जनानां भीतिरीतिश्च नृपाणां दारुणं रणम् ॥ विप्रपीडा मध्यवृष्टिः सस्यवृद्धिस्तृतीयभे ॥ २२ ॥ मिथुनराशिषर बृहस्पति होय तो मनुष्योंको भय हो खेतीमें । डीआदिकोंका भय हो राजाओंका दारुण युद्ध हे ब्राहणोंको पीड मध्यमवर्षा खेतीकी वृद्धि हो ।। २२ ॥ प्रभूतपयसो गावः सुजनाः सुखिनः स्त्रियः ॥ मदोद्धताः कर्किणीज्ये सस्यवृद्धियुता धरा ॥ २३ ॥ कर्कराशिका बृहस्पति होय तो गौ बहुत दूध देवें श्रेष्ठजनोंको सुख स्त्री मदोन्मत्त सुखी होवे पृथ्वीवर खेतीकी वृद्धि हो ।२३। सिंहराशिगते जीवे निःस्वा भूः सुरसत्तमाः॥ अतिवृष्टिर्व्यालभयं नृपा युद्धे लयं ययुः॥ २४ ॥