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भाषाटीकास -अ०२. (२५) सिंहराशिपर बृहस्पति होव तो पृथ्वीपर ब्राहण धनहीन होवें पृथ्वीपर सर्पोका भय हो वर्षा बहुत हो राजालोग युद्धमें मृत्युको प्रात होवें ॥ २४ ।। जीवे कन्यागते वृष्टिः हृष्टा स्वस्थाः क्षितीश्वराः । महोत्सुकाः क्षितिसुराः स्वस्थास्स्युर्निखिला जनाः।२ बृहस्पति कन्याराशिपर आवे तब वर्ष हो राजा प्रसन्न होवें ब्राहणलोग बहुत प्रसन्न रहें सब मनुष्य स्वस्थ (प्रसन्न ) रहैं।२५।। । जीवे तुलागते सर्वधातुमूलातुलं जगत् । तथापि धात्री संपूर्णा धनधान्यसुवृष्टिभिः ॥ २६ ॥ तुलाराशिपर बृहस्पति होय तो जगतमें धातु मूल आदि सब द्रव्य बहुतहों पृथ्वी पर धन धान्य सुंदर वर्षा होवे ।। २६ ।। मदोद्धतानां भूपानां युद्धे जनपदक्षयः। अतुष्टा वृष्टिरत्युग्रं डामरं कीटगे गुरौ ॥ २७ ॥ वृश्चिकराशिका बृहस्पति होय तो मदोन्मत्त राजाओंके युद्धमें देशक क्षयदो वर्षा खराब हो दारुण युद्धहो ।। २७ ।। जीवे चापगते भीतिरीतीर्भूपपभयं महत् ॥ अतुष्टा वृष्टिरत्युग्रा पीडा निःस्वाः क्षितीश्वराः॥ २८ ॥ धनराशिपर बृहस्पति हय तब प्रजामें भय टीडी आदि उपद्रवोंका भय राजाओंका महान् भय हो वर्षा अच्छी नहीं हो अत्यंत पीडा हो राजालोगं निर्धन होवें ।। २८ ।। अशत्रवो जना धात्री पूर्णा सस्यार्घवृष्टिभिः । वीतरागभयाः सर्वे मकरस्थे सुरार्चिते ॥ २९ ॥