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( २६ ) नारदसंहिता । मकरका बृहस्पति होय तब पृथ्वीपर सब मनुष्योंकी मित्रता रहे वर्षों बहुतहो खेती बहुत निपजे सबलोग कुशलपूर्वक रहैं ॥२९॥ सुरस्पर्द्धिजना धात्री फलपुष्पार्घवृष्टिभिः ॥ संपूर्णा कुंभगे जीवे वीतरोगयुता धरा ॥ ३० ॥ कुंभका बृहस्पति होय तब पृथ्वी पर मनुष्य देवताओंकी बराबर रहै फल पुष्प वर्षा बहुत हो पृथ्वीपर क्षेम आरोग्य रहैं ॥ ३० ॥ धान्यार्घवृष्टिसंपूर्णै क्वचिद्रोगः क्वचिद्भयम् । न्यायमार्गरता भूपाः सर्वे मीनस्थिते गुरौ ॥ ३१ ॥ इति श्रीनारदीयसंहितायां बृहस्पतिचारः ॥ मीनका वृहस्पति होय तब अन्न सस्ता हो, वर्षा बहुतहो, कहीं रोगहो, कहीं भयहो, संपूर्ण राजा न्यायमार्गमें स्थित रहें ॥ ३१ ॥ इति श्रीनारदसंहिताभाषाटीकायां गुरुचारः । सौम्यमध्यमयाम्येषु मार्गेषु त्रित्रिवीथयः ॥ शुक्रस्य दस्रभाद्यैश्च पर्यायश्च त्रिभिस्त्रिभिः ॥ १॥ उत्तर, मध्यम,दक्षिण इन मार्गेमें तीन२ वीथी कहीहैं तहां अश्विनी आदि तीन २ नक्षत्रोंपर शुक्र के पर्याय करके यथाक्रमसे जानना १॥ नागेभैरावताश्चैव वृषभो गोजरद्गवाः । मृगाजदहनाख्यास्स्युर्याम्यांता वीथयो नव ॥ २ ॥ जैसे कि नाग १ गज २ ऐरावत ३ वृषभ ४ गौ ५ जरद्रव ६ मृग ७ अज ८ दहन', ये नव वीथी दक्षिणपर्यत हैं ॥ २ ॥ सौम्यमानेषु तिसृषु चरन् वीथिषु भार्गवः ॥ धान्यार्घवृष्टिसस्यानां परिपूर्ति करोति सः ॥ ३ ॥