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( २८ ) नारदसंहिता । 'इससे विपरीत हो तो विपरीत फल जानना और बुधसहित -शुक्र होय तब वर्षा होती है कृष्णपक्षकी अष्टमी । चतुर्दशी तथा अमावास्याको शुक्र उदयहो अथवा अस्तहोय तो पृथ्वी पर वर्षा बहुतहो और बृहस्पति तथा शुक्र आपसमें सातवीं राशिपर स्थित होकर प्राग्वीथि और पश्चिमवीथि पर स्थितहों तो वर्षा नहीं हो दुर्भिक्षा तथा मरणहो और मंगल बुध बृहस्पति शनि ये शुक्र के आगे स्थितहोवें तो युद्धहो पवन बहुत चले दुभिक्ष होत्रे वर्षा नहीं हो शुक्रका तारा काला वर्ण तथा लाल वर्ण होय तो यवनों ( म्लेच्छों) का नाशहो ॥ ६-९ ॥ इति श्रीनारदसंहिताभाषाटीकायां शुक्रचारः । श्रवणानिलहस्तार्द्राभरणीभाग्यभेषु च ।। चरन्शनैश्चरो नृणां सुभिक्षारोग्यसस्यकृत् ॥ १ ॥ श्रवण, स्वाति, हस्त, आर्द्रा, भरणी, पूर्वाफाल्गुनी इन नक्षत्रों पर विचरताहुआ शनि मनुष्यको शुभहै सुभिक्ष कुशल करताहै ।। १।।। जलेशसार्पमाहेंद्रनक्षत्रेषु सुभिक्षकृत् ॥ क्षुच्छस्त्रावृष्टिदो मूलेहिर्बुध्न्यान्त्यभयोर्भयम् ॥ २॥ शतभिषा, आश्लेषा; ज्येष्ठा, इनपर होय तब भी सुभिक्षहो मूलपर होय तो दुर्भिक्ष, युद्ध, अनावृष्टि यह फल हो उत्तराभाद्रपदा तथा रेवती पर होय तब प्रजामें भयहो । २ । मूर्ध्नि चैकं मुखे त्रीणि गुह्ये द्वे नयने द्वयम् । हृदये पंच ऋक्षाणि वामहस्ते चतुष्टयम् ॥ ३ ॥