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भाषाढीस --अ०२. कुबेर संज्ञक ग्रहणमें साहूकारलोगोंके धनकी हानि हो और प्रजामें धान्यकी वृद्धि हो वरुणसंज्ञकग्रहणमें राजाओंको दुःख अन्य प्रजामें सुख हो । ६ ।। । प्रवर्षणं सस्यवृद्धिः क्षेमं हौताशपर्वणि ॥ अनावृष्टिः सस्यहानिर्दुर्भिक्षं याम्यपर्वणि ॥७॥ अभिसंज्ञकग्रहणमें वर्षा अच्छी हे खेतीकी वृद्धि हो प्रजामें कुशल हो याम्य पर्वमें वर्षा नहीं हो खेतीकी हानि दुर्भिक्ष हो ॥ ७ ॥ वेलाहीने सस्यहानिर्नृपाणां दारुणं रणम् ॥ अतिवेले पुष्पहानिर्भयं सस्यविनाशनम् ॥ ८ ॥ वेलाहीन अर्थात् स्पष्टसमयसे पहले ही ग्रहण होने लगजाय तो खेतीकी हानि राजाओंका दारुण युद्ध हो अतिवेल उक्तसमयसे । पीछे वा ज्यादै ग्रहण हो तो पुष्पकी हानि, भय, खेतीका नाश हो ॥ । ८ ॥ एकस्मिन्नेव मासे तुचंद्रर्कग्रहणं यदा । विरोधं धरणीशानामर्थवृष्टिविनाशनम् ॥ ९॥ जो एक ही महीनेमें चन्द्रमा सूर्य इन दोनोंका ग्रहण होय तो राजाओंका वैर हो धनका और वर्षाका नाश ह ।। ९ ।। ग्रस्तोदितावस्तमितौ नृपधान्यविनाशदौ ॥ सर्वग्रस्ताविनेंदुभौ क्षुद्वाय्वग्निभयप्रदौ ॥ १० ॥ ग्रहण होताहुआ उदय हो अथवा अस्त होय तो राजाका तथा धान्यका नाशहो सूर्य चंद्रमा इन दोनोंका सर्व ग्रहण होय तो दुर्भि- क्ष, वायु, अभि इन्होंका भय हो ।। १० ।।