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भाषाटीकाप्त ०-अ० २. ( ३ ३ ) यज्ञध्वजास्त्रभवनरथवृक्षगजोपमाः । स्तंभशूलगदाकारा अंतरिक्षाः प्रकीर्तिताः ॥ २ ॥ जैसे यज्ञध्वजा, अस्त्र, मंदिर, रथ, वृक्ष, हस्ती, शूल, स्तंभ, गदा, इनके आकार चिह्न किसीको आकाशमें दीखपडें वह अंत रिक्ष उत्पात कहा है ।। २ ।। नक्षत्रसंस्थिता दिव्या भौमा ये भूमिसंस्थिताः । एकोष्यमित्ररूपः स्याज्जंतूनामशुभाय वै ॥ ३ ॥ नक्षत्रोंमें स्थित कोई उपात दीखें वे दिव्य उत्पात कहे हैं भूमिमें जो उत्पात दीखें वे भौम उत्पात कहे हैं इनमेंते एकभी उत्पात शत्रुरूप है प्राणियोंको अशुभफलदायी जानना ।। ३ } यावतो दिवसात्केतुर्दश्यते विविधात्मकः । तावन्मसौः फलं वाच्यं मासैश्चैव तु वत्सराः ४ ॥ जितनेदिनोंतक केतु ग्रह ( शिखावालातारा) उदय रहे उतने ही महीनोंतक फल जानना और जितने महीनोंतक दीखे उतनेही वषततेक शुभ अशुभ फल जानना ।। ४ ।। ये दिव्याः केतवस्तेपि शश्वत्तीव्रफलप्रदाः । अंतरिक्षा मध्यफला भौमा मंदफलप्रदाः ।। ४ ।। जो आकाशमें केतु दीखें वे निरंतर दारुण फल करते हैं और जो आकाशमें उत्पात दीखतेहैं वे मध्यम फलदायी हैं पृथ्वी के उत्पात मंद फलदायी हैं । ५ ।। ह्रस्वः स्निग्धः सुप्रसन्नः श्वेतकेतुः सुभिक्षकृत् । क्षिप्रादस्तमयं याति दीर्घकेतुः सुवृष्टिकृत् ॥ ६॥