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( ३४ ) नारदसंहिता । छोटासा चिकना स्वच्छ सफेद पूंछवाला ऐसा केतु शुभदायकहै । जो शीघही छिपजाय ऐसा दीर्घ केतु भी शुभदायकहै । ६ । अनिष्टदो धूमकेतुः शक्रचापस्य सन्निभः । द्वित्रिचतुःशूलरूपः स च राज्यांतकृत्तदा ॥ ७ ॥ धूमासरीखा तथा इंद्रधनुषके वर्ण सरीखा केतु अशुभ है और दो, तीन, चार शूलोका रूप होय तो राज्यको नष्ट करे ।। ७ ।। मणिहारस्सुवर्णाभा दीप्तिमंतोर्कसूनवः ॥ केतवोभ्युदिताः पूर्वापरयोर्नृपघातकाः॥ ८॥ मणि, हार, सुवर्ण, इन सरीखी कांतिवाले केतु उदय होयें तो पहिले और पिछले राजाओंको नष्ट करें वे सूर्यके पुत्र कहलाते हैं । ८ ॥ बंधूकबिंबक्षतजशुकतुंडाग्निसन्निभाः ॥ हुताशनप्रदास्तेपि केतवश्वग्निसूनवः ॥ ९॥ बंधूक याने दुपहरिया, नाम फूल सरीखे तथा लालवर्ण तथा तोता सरीखे हरेवर्ण, अनि समान वर्ण ये केतु अग्निभय करते हैं ये अग्निके पुत्र कहे हैं ॥ ९ ॥ व्याधिप्रदा मृत्युसुता वक्रास्ते कृष्णकेतवः॥ भूसुता जलतैलाभा वर्तुलाः क्षुद्भयप्रदाः॥ १० ॥ टेढे आकारवाले कालेवर्ण केतु मृत्युके पुत्र हैं वे रोगदायक हैं जलके समान तथा तेल समान कांतिवाले गोलवर्ण केतु भूमिके पुत्र कहे हैं वे दुर्भिक्षका भय करते हैं ॥ १० ॥