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( ३६ ) नारदसंहिता । अग्निजा विश्वरूपाख्या अग्निवर्णाः शुभप्रदाः ॥ अरुणः श्यामलाकारः पापपुत्राश्च पापदाः॥ १३९ ।। विश्वरूप नामक केतु अग्निके पुत्रहैं वे अग्निसमान वर्णवाले शुभदायक हैं। लाल तथा श्यामवर्ण केतु पापके पुत्र हैं वे अशुभ फलदायक हैं ? १५ ।। शुक्रज्ञ ऋक्षसदृशः केतवः शुभदायकाः ॥ कंकाख्यब्राह्मजाः श्वेताः कष्टा वंशलतोपमाः। १६ ।। नक्षत्र समान आकारवाले साधारण तशसमान केतु शुक्रके पुत्र शुभदायक हैं। कंक्रनामक श्वेतवर्ण केतु बांस तथा लतासमान आकार उदय होते हैं वे कष्टदायक कहे हैं ।। १६ ।। कबंधाख्याः कालसुता भस्मरूपास्त्वनिष्टदाः । विधिपुत्राह्ययाः शुक्लाः केतवो नेष्टदायकः१७ ॥ कबंधनामक कालके पुत्र हैं वे भस्मसमान वर्णवाले अशुभ कहे हैं और सफेद वर्ण केतु ब्रह्माके पुत्र हैं वे शुभदायक नहीं हैं।१७। कृत्तिकासु समुद्भूतो धूमकेतुः प्रजांतकृत् ॥ प्रासादशैलवृक्षेषु जातो राज्ञां विनाशकृत् ॥ १८॥ कृत्तिका नक्षत्रोंके पास केतु उदय होय तो प्रजा नाशकरें देवमंदिर पर्वत बड़ावृक्ष इनके ऊपर केतु उदय हो तो राजाओंका नाश करे ।। १८ ॥ सुभिक्षकृत्कुमुदाख्यः केतुः कुमुदसन्निभः । आर्तकेतुः शुभदः श्वेतश्चावर्तसन्निभः ॥ १९ ॥