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( ३८ )। नारदसंहिता । प्रवर्षणं मेघगर्भो नाक्षत्रेण प्रगृह्यते । यात्रोद्वाहव्रतक्षौरतिथिवर्षादिनिर्णयः ॥ ४ ॥ वर्षाकाल मेघका गर्भ ये नाक्षत्र मासके क्रमसे ग्रहण किये जाते हैं । यात्रा,विवाह,व्रत, औरतिथि वर्षादिका निर्णय ॥४॥ पर्ववास्तूपवासादि कृत्स्नं चांद्रेण गृह्यते ॥ गृह्यते गुरुमानेन प्रभवाद्यब्दलक्षणम् ॥ ५॥ पर्वणी वास्तुकर्म व्रत नियम यह चांद्रमाससे ग्रहण किये जाते हैं अर्थात् चैत्रशुक्ल पक्षसे जो संवत् लगता है वही क्रम लिया जा ताहै और प्रभवादिक संवत्सरोंका लक्षण गुरुमानसे ग्रहण किया । जाता है ॥ ५॥ भचक्रगतिरार्क्षं स्यात्सावनं त्रिंशता दिनैः । सौरं संक्रमणं प्रोक्तं चांद्रं प्रतिपदादिकम् ॥ ६ ॥ नक्षत्रोंकी गतिके अनुसार गिनाजाय वह आर्क्ष ( नक्षत्र मास ) कहा है और पूरे तीस दिनका होय वह सावन मास कहाहै । सूर्यकी

  1. संक्रांतिके क्रमसे हो वह सौर मासहै प्रतिप्रदाआदि क्रमसे चांद्र

संज्ञक मास होताहै ॥ ६ ॥ तत्तन्मासैर्द्वादशभिस्तत्तदब्दो भवेत्ततः ॥ गुरुचारेण संभूताः षष्ट्यब्दाः प्रभवादयः ॥ ७ ॥ तिन बारह महीनोंकरके तिसी २ नामबाण वर्ष होता है तहां बृहस्पतिकी राशिक्रमसे प्रभवआदि साठ संवत्सर होते हैं ॥ ७ ॥ प्रभवो विभवः शुक्लः प्रमोदोथ प्रजापतिः । अंगिराः श्रीमुखो भावो युवा धाता तथेश्वरः ॥ ८॥ छ ।