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भाषाटीकास ०-अ० ३. (४१) A = आन्वीक्षिकीसु निरताः सप्रजाः स्युः क्षितीश्वराः। कर्षकाभिमता वृष्टिर्विभवाब्दे विवैरिणः। १८ ।। वितवनाम वर्षमें राजा प्रजा नीतिमें प्रवृत्त रहैं किसानलोगोंके मनके अनुसार वर्षाहो लोगोंमें आपसमें प्रीति बढे ।। १८ ।। सकलत्रात्मजाञ्छश्वल्लालयंत्यबला जनः । अमरस्पर्द्धिनः शुक्ले वत्सरे विगतारयः ॥ १९ ॥ शुक्ल नामक वर्षमें पुरुष निरंतर स्त्रीपुत्रोंका सुख भोगें और स्त्रियां पुत्रका सुख भोगें देवताओंके समान आनन्दवृद्धि हो प्रजामें शत्रुता न रहें ।। १९ ।। अतिव्याध्यर्दिता लोकाः क्षितीशः कलहोत्सुकाः । प्रमोदाब्दे प्रमोदंते तथापि निखिला जनाः ॥ २० ॥ प्रमोदनाम वर्षमें लोगोंमें अत्यंत बीमारी रहै राजाओंमें कलह रहै तो भी संपूर्ण प्रजा सुख भोगै ॥ २० ॥ क्लेशः क्वचिन्न प्रेक्ष्यंते स्वजनानामनामयः ॥ एवं वै मोदते लोका प्रजापतिशरद्युतः ॥ २१ ॥ प्रजापतिनामक बर्षमें प्रजामें दुःख कभी नहीं हो स्वजनोंके साथ मित्रता बढे रोग नहीं हो ऐसे प्रजामें आनंद रहै ॥ २१ ।। अतिथिस्वजनैस्सार्घमन्नं बोभुज्यते मधु ॥ पेपीयंते कामिनीभिरंगिरोऽब्दे निरंतरम् ॥ २२ ॥ अंगिरा नामक वर्षमें अतिथिजन तथा स्वजन मनुष्योंके साथ अन्न मिष्ट पदार्थ भोजन किया जाय स्त्रियाँ अच्छे प्रकारसे रमण करैं ।। २२ ।।