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{४२ ) नारदसंहिता । श्रीमुखेब्दे दुग्धपूर्णा गोकर्णवलयेव भूः । सस्यपीता वरावारि गावस्तुंगपयोधराः ॥ २३ ॥ श्रीमुखनामक वर्षमें पृथ्वीपर दूधदेनेवाली गौओंकी वृद्धि हो खेतियोंमें वर्षा बहुत अच्छी हो गौऑके दूधकी वृद्धिहो ।२३।। स्युर्भूभुजो प्रभाभाजः प्रभंजनभुजः परे ॥ भावाब्दे भूसुरग्राम भ्रमणं लोभतः सदा ॥ २७ ॥ भाव नामक वर्षमें राजाओंके तेजकी वृद्धि, शत्रुओंको दुःखहो ब्राह्मण लोगोंके समूह लोभके कारण प्रजामें भ्रमते रहैं ॥ २४ ॥ मुदऽजस्रं रमयति युवाब्दे युवतीजनः ॥ युवानो निखिला लोकाः क्षितिश्चापि फलोत्कटा।२४।। युवा नामक वर्षेमें स्रियां निरंतर रमणकरें और पृथ्वीपर फल बहुत उत्पन्न होवे ॥ २५ ।। धात्री धात्रीव लोकानामभया च फलप्रदा । धात्रब्दे धरणीनाथाः परस्परजयोत्सुकाः ॥ २६ ॥ धाता नामक वर्षमें पृथ्वी लोगोंको माताके समान सुखदेनेवाली हो, भय नहींहो, पृथ्वी पर फल बहुत हों राजालोग आपसमें युद्ध करनेकी इच्छा करें ॥ २६ ॥ ईश्वराब्दे स्थिरः क्ष्मेशा जगदानंदिनी मही । अध्वरे निरता विप्राः स्वस्वमार्गे रताः परे ॥ २७ ॥ ईश्वरनामक वर्षमें राजालोग सुखी रहैं पृथ्वीपर सब मनुष्य बहुत खुशी रहैं ब्राह्मण लोग यज्ञकरनेमें तत्पर रहें अन्य लोग अपने अपने काममें तत्पर रहैं ।। २७ ।। 4A +९