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भाषाटीकास०-अ० ३ ( ४३ ) बहुधान्ये च बहुभिर्धान्यैः पूर्णाखिला धरा ॥ प्रभूतपयसो गावो राजानः स्युर्विवैरिणः ॥ २८ ॥ बहुधान्य नामक वर्षमें पृथ्वी बहुत धान्यसे परिपूर्ण हो गौवें बहुत दूध देवें राजाओंमें वैर नहीं रहै ।। २८ ।। बलाहका न मुञ्चति कुत्रचित्प्रचुरं पयः । प्रमाथ्यब्दे वीतरागास्तथापि निखिला जनाः॥ २९॥ प्रमाथी नामक वर्षमें मेघ क्ह विशेष वर्षा नहीं करें मनुष्योंमें आपसमें वैर होये ।। २९ ।। प्रवहंति जलं स्वच्छं स्रवंति प्रचुरं पयः। विक्रमाब्देखिलाः क्ष्मेशा विक्रमाक्रांतभूमयः ॥३० ॥ विक्रम नामक वर्षमें वर्षा बहुत हो सम्पूर्ण राजा लोग सेनाओंसे भरपूरहोके पृथ्वी दबानेका उद्योग करें ॥ ३० ॥ विविधैरन्नपानाद्यैर्ह्रष्टपुष्टांगचेतसः । मदोन्मत्ताखिला लोका वृषाब्दे वृषसन्निभाः ॥ ३१ ॥ वृष नामक वर्षमें अन्नादिकोंके प्रभावसे सब मनुष्य हृष्टपुष्टशरीर- वाले मदोन्मत्त होकर वृष ( बैल ) समान पुष्ट रहैं ॥ ३१ ॥ विचित्र वसुधा चित्रपुष्पवृष्टिफलादिभिः ।। चित्रभानुशरद्येषा भाति चित्रांगना यथा ॥ ३२ ॥ चित्रभानु वर्षमें विचित्र पुष्प फलादिकोंके प्रभावसे यह पृथ्वी ऐसी विचित्र शोभित हो कि जैसे चित्रांगना ( सुंदरनारी) शोभित हो ॥ ३२ ॥