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( ४४ ) नारदसंहिता । नन्दन्तीह जनाः सर्वे भूमिर्भूरिफलान्विता । सुभlनुवत्सरे भूमिर्भीमभूपालविग्रहा ॥ ३३ ॥ सुभानु नामक वर्षमें पृथ्वी बहुत फलोंसे भरपूर हे सब मनुष्य आनंद करें राजालोगोंका युद्ध हो ॥ ३३ ॥ प्रतरन्त्युडुपोपायैः सरितोर्थाय संततम् ॥ तरणाब्दे त्वतुलिता अर्थवंतो हि जंतवः ॥ ३४ ॥ तारण नामक वर्षमें प्रयोजन के वास्ते निरंतर नौकाके उपायोंकरके सब मनुष्य नदियोंसे पार गमन करें और बहुत धनका संचय करें ॥ ३४ ॥ पतन्ति करकोपेताः पयोधारा निरंतरम् ॥ पापादपेतमनसः पार्थिवाब्दे तु पार्थिवाः ॥ ३५ ॥ पार्थिव नामक वर्षमें ओला सहित निरंतर वर्षा हो राजालोग अपने मनमें पापका चिंतचन न करें ।। ३५ ॥ दीप्यते वसुधा वीरभटवारणवाजिभिः॥ व्यपेतव्याधयः सर्वे व्ययाब्दे तु व्ययान्विताः ॥ ३६ ॥ व्ययनाम वर्षमें शूरवीर हस्ती घोडे इन्होंने पृथ्वी परिपूर्ण, प्रजामें बीमारी नहीं हो सब मनुष्य द्रव्य खर्च बहुत करें ।। ३६ ।। । गीर्वाणपूर्वगीर्वाणान् गर्वनिर्भरचेतसः ॥ सर्वाजिद्वसरे सर्व उर्वीशानं हंति भूमिपान् ॥ ३७ ॥ सर्वजित् नामक वर्षमें गर्वसे भरपूर हुए संपूर्ण पृथ्वीकें राजालोग देवतो तथा दैत्योंको नष्ट करै अर्थात् पृथ्वीपर बहुत सुख बढै ।। ३७ ।।