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भाषाटीकास-अ० ३. (४५) सर्वधारीवत्सस्मिन् जगदानंदिनी धरा ॥ प्रशांतवैरा राजानः प्रजापालनतत्पराः ॥ ३८॥ सर्वधारी नामक वर्षमें पृथ्वीपर सबजगह आनंद होवे राजालोग आपसमें वैरभाव नहीं करें अपनी २ प्रजापालनमें तत्पर रहैं ।।३८।। विरोधं सततं कुर्वत्यन्योन्यं क्षितिपाः प्रजाः ॥ विरोधिवत्सरे भूमिर्भूरिवारिधरैर्वृता ॥ ३९ ॥ विरोधी नामक वर्षमें राजालोग आपसमें युद्ध करें पृथ्वीपर वर्षा बहुत हो ।। ३९ ।। विकृतिः प्रकृतिं याति प्रकृतिविंकृतिं तथा । तथापि मोदते लोकस्तस्मिन् विकृतवत्सरे ॥ ४० ॥ विकृत नामक वर्षमें खराब नीच जन उत्तम पदवी प्राप्तहोवें और अच्छे जन निरादरको प्राप्तहों परंतु सबलोग सुखी रहैं ।।४०। खराब्दे सततं सम्यग्बध्यन्ते पशवः प्रजाः । । राजानो विलयं यांति परस्परविरोधतः ॥ ४१ ॥ खर नामक बर्षमें संपूर्ण प्रजा तथा पशु बंधनमें प्राप्त होवें राजा- लोगं आपसमें युद्ध करके नष्टहोजायें ॥ ४१ ॥ आनंददा धराजस्रं प्रजाभ्यः फलसंचयैः । नंदनाब्दे स्वहानिः स्यात्कोशधान्यविनाशकृत् ॥६२॥ नंदन नभक वर्षों प्रजामें धान्य फल आदिकोंसे सव प्रजाको निरंतर आनंद रहै और सोना चांदी आदि धनका व खजानाका नाश हो ॥ ४२ ॥ ०