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भाषाटीकास०--अ० ३. (४७) हेमलंब नामक वर्षमें सब राजालोग आपसमें वैरभाव करैं प्रजामें पीडा अन्नादिकका भाव महँगा रहे तौ भी लोगोंमें सुख रहे॥४७॥ विलंबवत्सरे राजविग्रहो भूरिवृष्टयः ॥ आतंकपीडिता लोकाः प्रभूतं चापरं फलम् ।। ६८॥ विलंब नामक वर्षमें राजाओंका युद्ध हो वर्षों बहुत हो लोगोंमें रोगवृद्धि हो अन्य सब फल अच्छा हो ।४८ ॥ विकारिणो विकार्यब्दे पित्तरोगादिभिर्नराः । मेघो वर्षति संपूर्णं समुद्रवसनक्षितौ ॥ ४९॥ विकारी नामक वर्षमें मनुष्य पित्त आदि रोगोंसे पीडित होवें वर्षा बहुत हो पृथ्वीपर सर्वत्र जल फैल जावे ।। ४९ ॥ शार्वरीवत्सरे सर्वसस्यवृद्धिरनुत्तमा। चलिताचलसंकाशैः पयोदैरावृतं नभः ॥ ६० ॥ शर्वरीनामक वर्षमें पृथ्वीपर सब खेतियोंकी बहुत अच्छी वृद्धि हो और चलित अचल ( पर्वत ) समान कांतिवाले मेघोंकरके आकाश आच्छादित रहे ।। ५० ।। दीप्यंते सततं भूपाः प्लवाब्दे प्लवगा जनाः॥ राजते पृथिवी सर्वा सततं विविधोत्सवैः ॥ ६१ ॥ प्लव नामक वर्षमें राजालोग निरंतर विराजमान होवें मनुष्य नौकामें स्थित हो गमन करें संपूर्ण पृथ्वी अनेक उत्सव करके शोभित हो।। ५१ ।। शुभकृद्धत्सरे सर्वसस्यनामतिवृद्धयः ॥ नृपाणां स्नेहमन्योन्यं प्रजानां च परस्परम् ॥ ६२ ॥