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(४८) नारदसंहिता । शुभकृत् नामक वर्षमें संपूर्ण खेतियोंकी अत्यंत वृद्धि हो राजा ओंकी आपसमें मित्रता बढैं प्रजामें कीर्ति बढैं ॥ ५२ ॥ शोभनाख्ये हायने तु शोभनं भूरि वर्तते । नृपाश्चैवात्र निर्वैराः सर्वसम्पद्युता धरा ॥ ९३ ॥ शोभन नामक वर्षमें पृथ्वीपर बहुत शोभन हो, और राजा निर्वैरहों, पृथ्वी संपूर्ण संपत् से युक्त हो ।। ५३ ।। क्रोध्यब्दे सततं रोगाः सर्वसस्यसमृद्धयः । दंपत्योर्वैरमन्योन्यं प्रजानां च परस्परम् ॥ ५४ ॥ क्रोधी नामक वर्षमें प्रजामें निरंतर रोग होवे और संपूर्ण खेति यॉकी वृद्धि स्त्रीपुरुषोंका आपसमें वैर हो ।। ५४ ।। शश्वद्विश्वासावब्दे मध्यसस्यार्घवृष्टयः ॥ प्रचुराश्चौररोगाश्च नृपा लोभाभिभूतयः ॥४॥ विश्वावसु नामक वर्षमें निरंतर मध्यम खेती उपन्न हों,गध्यम वर्षा तथा अन्नका भाव महंगा रहै रोग तथा चौरॉकी वृद्धि हो राजा लोग लोभी होवें । ५५ ।। पराभवाब्दे राजानः प्रभुवंति पराभवम् ॥ आमयः क्षुद्रधान्यानिप्रभूतानि सुवृष्टयः ॥ ३६ ॥ पराभवनाम वर्षमें राजा लोग तिरस्कारको प्राप्त होवें रोग होवे। और मटरमोट आदितुच्छ धान्यज्यादे निपजे वर्षा ज्यादै हो।५६।४ प्लवंगाब्दे सस्यहानिश्चौररोगार्दिता जनाः॥ मध्यवृष्टिः क्षितीशानां विरोधं च परस्परम् ॥ ५७ ॥ प्लवंगनामक वर्षमें खेतीकी हानि चौरोकी वृद्धि प्रजामें रोग मध्यमवर्षा राजाओंका आपसमें युद्ध होवे ।। ५७ ।।