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Ab भाषाटीकास०-अ० ३. (५३१ ) कालयुक्त नामक वर्षमें वर्षा बहुत हो सब जन सुखी रहैं निरंतर संपूर्ण खेती निपजें और सब वृक्षोंके अच्छा फल लगे ।। ६८ ॥ सिद्धाथींवत्सरे भूपाश्चान्योन्यं स्नेहकांक्षिणः । संपूर्णसस्यां वसुधां दुदुहुर्गा यथा तथा ॥ ६९॥ सिद्धार्थी नामक वर्षमें राजालोग आपसमें मित्रता बढनेकी इच्छा करें और जैसे गैौको दहते हैं ऐसे संपूर्ण खेतियोसे । भरपूर हुई पृथ्वीका दोहन करें (भोगकरें)। ६९ ।। अन्योन्यं नृपसंक्षोभं चौरव्याघ्रादिभिर्भयम् ॥ मध्यवृष्टिरनर्घत्वं रौद्राब्दे नैव गुर्ज्जरे ॥ ७० ॥ रौद्र नामक वर्षमें राजालोग आपसमें वैरभाव करें और चौर व्याघ्र आदिकोंका भय हो मध्यम वर्षा हो अन्नादिकोंका भाव महँगा रहै परंतु गुर्जर (गुजरात ) देशमें यह फल नहीं हो अर्थात शुभफलहो ।। ७० ।। दुर्मत्यध्दे दुर्मेतयो भवंत्यखिलभूमिपाः ॥ तथापि सुखिनो लोकाः संग्रामे निर्जितारयः ॥ ७१ ॥ दुर्मति वर्षमें संपूर्ण राजालोगोंकी बुद्धि खराब रहै तो भी सब प्रजाके लोग युद्धमें शत्रुओंको जीतें और सुखी रहैं ॥ ७१ ॥ सर्वसस्यैश्च संपूर्णा धात्री दुंदुभिवत्सरे ॥ राजभिः पाल्यते पूर्वदेशेश्वरविनाशनम् ॥ ७२ ॥ दुंदुभि नामक वर्षमें पृथ्वी खेतियोंसे भरपूरहो राजालोग प्रजाकी पालना करें पूर्व देशका नाश हो ॥ ७२ ॥