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भाषाटीकास ०-अ० ३. (५३ ) सौम्यायनं मासषदं मृगाद्यं भानुभुक्तितः ॥ अहः सुराणां तद्रात्रिः कर्काद्यं दक्षिणायनम् ॥ ७८ ॥ मकर आदि छः राशियोंपर सूर्य रहै तबतक उत्तरायण कहता है वह देवताओंका दिन और कर्क आदि छह संक्रातियोंमें जो दक्षिणायन कहा है वह देवताओंकी रात्रि है ॥ ७८ ॥ गृहप्रवेशवैवाहप्रतिष्ठा मौंजिबंधनम्॥ यज्ञादिमंगलं कर्म कर्तव्यं चोत्तरायणे । याम्यायनेऽशुभं कर्म मासप्राधान्यमेव च ॥ ७९ ॥ गृहं प्रवेश, विवाहप्रतिष्ठा, मौंजीबंधन, यज्ञादि मंगल, ये कर्म उत्तरायण सूर्य हो तब करने चाहियें और दक्षिणायनमें अशुभ कर्म तथा मासप्रधान्य महीनाके योगमें होनेवाले कर्म करने चाहियें ॥ ७९ ।। क्रमाच्छिशिरस्रसंतग्रीष्माः स्युश्चोत्तरायणे॥ वर्षा शरच्च हेमंत ऋतवो दक्षिणायने ॥ ८० ॥ उत्तरायण सूर्यंमें क्रमसे शिशिर वसंत ग्रीष्म ये तीन ऋतु होती हैं, दक्षिणायनमें वर्षा शरद हेमंत ये ऋतु होती हैं ॥ ८० ॥ माघादिमासौ द्वौद्वौ च ऋतवः शिशिरादयः॥ वांद्रो दर्शावधिः सौरः संक्रांत्या सावनो दिनैः ॥ ८१ ॥ त्रिंशद्भिश्चंद्रभगणो मासो नाक्षत्रसंज्ञकः । मधुश्च माधवः शुक्रः शुचिश्चापि नभाह्वयः ॥ ८२ ॥ माय आदि दो २ महीने ये शिशिर आदि ऋतु यथाक्रमसे जानने । चांद्रमास अमावस्याको समाप्त होता है सौरमास संक्रा-