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भाषाटीकास ०-अ० ४. ३ ३ वह्निविरिंचिगिरिजागणेशः फणी विशाखो दिनकृन्महेशः । दुर्गान्तको विष्णुहरी स्मरश्चसर्वः शशी चेतिपुराणहृष्टः॥१॥ अथ प्रतिपदा आदि तिथियोंके स्वामी अग्नि १ ब्रह्मा २ गौरी ३ गणेश ४ सर्प ५ स्कंद ६ सूर्य ७ शिव ८ दुर्गा ९ यम १० विश्वेदेवा ३१ हरि १२ कामदेव १३ शिव १४ चंद्रमा १५ ये प्रतिपदा आदि पूर्णिमातक तिथियोंके स्वामी हैं ।। १ । । अमाया पितरः प्रोक्तास्तिथीनामधिपाः क्रमात् ॥ २॥ अमावस्याके स्वामी पितर हैं ऐसे तिथियोंके स्वामी यथाक्रम जानने चाहियें ।। २ ।। तिथीनामपराः संज्ञाः कथ्यन्ते ता यथाक्रमात् ॥ ३ ॥ तिथियोंकी अन्यभी संज्ञा है सो यथा क्रममे नंदा, भद्रा, जया रिक्ता, पूर्णा ऐसे जाननी ।। ३ ॥ पर्यायत्वेन विज्ञेया नेष्टमध्येष्टदा सिते ॥ कृष्णपक्षेपीठमध्यनेष्टदाः क्रमशः सदा ॥ ४ ॥ ये तिथि अर्थात् प्रतिपदा ५ तक फिर १० तक फिर १५ तक ऐसे शुक्लपक्षमें अशुभ, मध्यम, श्रेष्ठ, ऐसे फलदायी जाननी और कृष्णपक्षमें श्रेष्ठ मध्यम, अशुभ ऐसे क्रमसे जाननी ।। ४ ।। चित्रलेख्यासवक्षेत्रतैलशय्यासनादि यत् । वृक्षच्छेदो गृहमार्थं कर्तृप्रतिपदीरितम् ॥ ५॥ चित्र लिखना, मदिरा निकटनी, खेतका काम, तेल मालिश, शय्य, आसन, वृक्षकाटना, घर पत्थरका काम . ये कर्म प्रतिपदा तिथिविषे करने शुभ हैं ।। ५ ।।