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( ६० ) नारदसंहिता । अर्थपुत्रक्षयं तस्य द्वितीयायां न संशयः॥ अमायां च नवम्यां च सप्तम्यां च कुलक्षयः ॥ २७ ।। द्वितीया विषे धन और पुत्रका नाश हो अमावस्या नवमी सप्तमी इन विषे आंवलोंसे स्नान करे तो कुळका क्षय हो ।२७ ।। या पूर्णमास्यनुमतिर्निशि चंद्रवती यदा । दिवा चंद्रवती राका ह्यमावास्या तथा द्विधा ॥ २८ ॥ जिसमें रात्रिमें चंद्रमा प्राप्त हो अर्थात् चतुर्दशीमें पूर्णिमा आई हो यह अनुमति कही है और दिनमें भी चंद्रमाकी पूर्ण कलाओंसे युक्त हो वह राकासंज्ञक पूर्णिमा तिथि कही है तैसे ही अमावस्या में दो प्रकारकी कही है ॥ २८ ॥ सिनीवाली सेंदुमती कुहूर्नेदुमती मता ॥ कार्तिके शुक्लनवमी त्वादिः कृतयुगस्य सा ॥ २९ ॥ एक तो सिनीवाली है उसको चंद्रमा दीखजाता है और कुहू संज्ञक कही है उसको चंद्रमाकी सब कला क्षीण होजाती हैं और कार्तिक शुक्ल नवमी तिथी सत्ययुगादितिथि कही है ॥ । २९ ।। ॥ त्रेतादिर्माधवे शुक्ला तृतीया पुण्यसंज्ञिता । कृष्णा पंचदशी माघे द्वापरादिरुदीरि ता ॥ ३० ॥ वैशाख शुक्ला तृतीया त्रेताकी आदि तिथि कही है पवित्र है माघकी अमावस्या द्वापरकी आदि तिथि कही है ॥ ३० ॥ कल्पास्याित्कृष्णपक्षे नभस्ये च त्रयोदशी । द्वादश्यूर्जे शुक्लेपक्षे नवम्याश्वयुजे सिते ॥ ३१ ॥