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(६२ ) नारदसंहिता । R = एकवार निरंतर एक बार विषे तीन तिथि क्षय होवें अथवा निरंतर तीन उनही वारोंमें एक तिथि बढी हो वह अत्यंत निंदित कही है ।। ३६ ।। सूर्यास्तमनपर्यंतं यस्मिन् रेपि या तिथिः । विद्यते सा त्वखंडास्याद्दूनाचेत्खंडसंज्ञिता ॥ ३७ ॥ सूर्य अस्त हो तबतक एकही तिथि उस वारमें रहे तो वह अखं डा तिथि कहती है जो ऊन ( अधूरी ) रह जावे तो वह खंडिता कहलाती है । ३७ ।। । तिथेः पंचदशो भागः क्रमात्प्रतिपदादयः॥ द्विघटीप्रमितं तत्र मुहूर्ते कथितं बुधैः ॥ ३८ ॥ इति श्रीनारदीयसंहितायां तिथिलक्षणाध्यायश्चतुर्थः। ९ ।। तिथिका पंद्रहवाँ भाग अर्थात चंद्रमंडलका पंद्रहवाँ भाग प्रतिपदा आदि तिथि कही हैं और दो घडीका एक मुहूर्त्त होता है । । ३८ ॥ इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां तिथिलक्षणाध्यायश्चतुर्थः।।४।। नृषाभिषेकमांगल्यसेवायानास्रकर्म यत् ॥ औषधाहवधान्यादि विधेयं रविवासरे ॥ १ ॥ राज्याभिषेक, मंगळकर्णी, सेव, सवारी, अश्नकर्म, औषध, युद्ध, धान्य कर्म ये रविवार विषे करने चाहिये ।। १ ।। शंखमुक्तांबुरजतवृक्षेक्षुस्त्रीविभूषणम् । पुष्पगीतऋतुक्षीरकृषिकर्मेन्दुवासरे ॥ २ ॥