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(६४ ) नारदसंहीता । रविः स्थिरश्चरश्चंद्र कुजः क्रूरो बुधोखिलः ॥ लघुरीज्यो मृदुः शुक्रस्तीक्ष्णो दिनकरात्मजः ॥ ८॥ सूर्य स्थिर है चंद्रमा चरहे मंगल क्रूर और बुध अच्छे प्रकार पूर्ण है बृहस्पति लघु (अच्छा हलका ) है शुक्र मृदु ( कोमल ) है शनि तीक्ष्ण कहा है ॥ ८ ॥ अभ्यक्तो भानुवारे यः स नरः क्लेशवान् भवेत् ॥ ऋक्षेशे कांतिभाग् भौमे व्याधिः सौभाग्यमिंदुजे ॥ ९॥ जो मनुष्य रविवारको तेल आदिकी मालिश करै वह दुःखी हो चंद्रवारको तेल लगावे तो अच्छी कांति बढे मंगलको लगावे तो बीमारी हो बुधको सौभाग्य प्राप्त हो ।। ९॥ जीवे नैःस्वं सिते हानिर्मदे सर्वसमृद्धयः । उदयादुदयं वर इति पूर्वविनिश्चितम् ॥ १० ॥ बृहस्पतिको दरिद्रता शुक्रको हानि और शनिवारको तेल लगावे तो सब बातोंकी समृद्धिहो सूर्यके उदयप्रति बार लगता है यह पहिलेका निश्चय चला आताहै ॥ १० ॥ लंकोदयात् स्याद्वारादिस्तस्मादूर्ध्वमधोपि वा । देशान्तरचरार्द्धाभिर्नाडीभिरपरो भवेत् ॥ ११ ॥ लंकामें सूर्य उदय हो वह वारादि हैं और लंकासे ऊपरक तथा नीचेको जो देशांतर हैं उनके चर खंडाओंकरके घटियोंके अंतर होते हैं अर्थात् सब जगह सब समयमें एकवक्त वार नहीं लगताहै शास्त्रोक्तविधिसे वारप्रवेश देखा जाता है ॥ ११ ॥