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भाषाटीकास ०-अ० ५. (६५) बलप्रदस्य खेटस्य वारे सिध्यति यत्कृतम् । तत्कर्म बलहीनस्य दुःखेनापि न सिध्यति ॥ १२॥ बलदायक ग्रहके वारमें जो कर्म किया जाय यह सिद्ध होता है। वही काम जो बलहीन ग्रहके वारमें किया जाय तो परिश्रम होकर भी कार्य सिद्ध नहीं होता ॥ १२ ॥ बुधेंदुजीवशुक्राणां वासरः सर्वकर्मसु । सिद्धिदाः क्रूरेवारेषु यदुक्तं कर्म सिध्यति ॥ १३ ॥ बुध, चंद्र, बृहस्पति, शुक्र ये वार सब कामोंमें अच्छे हैं और क्रूरवारोंमें उग्र कर्म कहे हैं वेही सिद्ध होते हैं ॥ १३ ॥ रक्तवर्णो रविश्चन्द्रो गौरो भौमस्तु लोहितः॥ दूर्वावर्णो बुधो जीवः पीतः श्वेतस्तु भर्गवः ॥ १४ ॥ सूर्य लालवर्ण है चंद्रमा गौरवर्ण है मंगल लालवर्ण है। बुध हरितवर्ण है बृहस्पतिका पीलवर्ण है शुक्र सफेदवर्ण है॥ १४॥ कृष्णः शैरिः स्ववारेषु स्वस्ववर्णाः क्रियाःशुभाः॥१८॥ शनैश्चर कालावर्ण है तहां अपने २ वर्णोके कामकरनेमें शुभ कहे हैं । अद्रि ७ बाणा ६ व्धय ४ स्तर्कं ६ तोयाकर ४ धराधराः ७॥। बाणा ५ ग्नि ३ लोचनानि २ स्यु र्वेद ४ बाहु २ शिलीमुखः ९॥ १६ ॥ अब कुलिक आदि योग कहते हैं रविवारको ७-५-४ इन प्रहरोंमें और चंद्रवारको ६-४-७ इन प्रहरोंमें मंगळवारको ५- ३-२- इन प्रहरोंमें बुधको ४-२-५- इन प्रहरोंमें ।। १६ |}