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भाषाटी ०-अ० ६. ( ७३ ) इन अधोमुख नक्षत्रोंमें गुफामें प्रवेश होना गणित मंत्र यंत्र साधन, लिखना शिल्पकर्म लता (वेल ) लगाना कूँवामें गिरी हुई वस्तु निकलना शुभ है ॥ २७ ॥ मित्रेंदुत्वाष्ट्रहस्तार्द्रादितिभांत्योश्ववायुभम् ॥ तिर्यङ्मुखाख्यं नवकं भानां तत्र विधीयते ॥ २८ ॥ इति तिर्यङ्मुखम् ॥ अनुराधा, मृगशिर, चित्रा, हस्त, ज्येष्ठा, पुनर्वसु रेवती अश्वि- नी स्वाति ये नव नक्षत्र तिर्यङ्मुख संज्ञक हैं ।। २८ ॥ हलप्रवाहगमनं गंत्री यंत्रगजोष्ट्रकम् ॥ अजादिग्रहणं चैव हयकर्म यतस्ततः ॥ २९॥ इन नक्षत्रमें हल जोतना, गमन, गाडी बनाना, हाथी ऊँट, बकरी आदि खरीदना घोडा खरीदना ये शुभ हैं ।। २९॥ खरगोरथनौयानं लुलायहयकर्म च ॥ शकटग्रहणं चैव तथा पश्वादिकर्म च ॥ ३० ॥ ओर गधा, बैल,रथ, नौका इन्होंकी सवारी करना भैंस, घोडा का कार्य गाडीका कार्य ऊंट खरीदना तथा अन्य पशुका कार्य । शुभ्र है ॥ ३० ॥ इति तिर्यक् कर्म । ब्रह्मविष्णुमहेशार्यशततारावसूत्तराः ॥ ऊर्ध्वास्यं नवकं भानां प्रोक्तं चैव विधीयते ॥ ३१ ॥ इत्यूर्ध्वमुखम् ॥ रोहिणी, श्रवण, आर्द्रा, पुष्य, शतभिषा, धनिष्ठा, तीनों उत्तरा ये नव नक्षत्र ऊर्द्ध्वमुखसंज्ञक कहे हैं ॥ ३१ ॥