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( ७६) नारदसहिता । नक्षत्र व मूल नक्षत्रमें खेतमैं पहिले बैलोंकरके हल जोतना शुभदायक है ॥ ३९ ॥ हलादौ वृषनाशाय भत्रयं सूर्यभुक्तभात् ॥ अग्रे यच्चैव वै लक्ष्म्यै सौम्यं पाठं च पंचकम् ॥ ४० ॥ और हळचक्रकी आदिमें सूर्यके नक्षत्रसे तीन नक्षत्र हैं वे बैलोंका नाश करते हैं फिर ३ नक्षत्र अग्रभागमें हैं उनमें लक्ष्मी प्राप्ति हो बराबरमें ५ नक्षत्र शुभदायक कहे हैं ॥ ४० ॥ शूलत्रयेऽपि नवकं मरणायान्यपंचकम् ॥ श्रियै पुच्छे त्रयं श्रेष्ठं स्याच्चक्रे लांगले शुभम् ॥ ४१ ॥ त्रिशूलके ऊपर नौ नक्षत्र मरणदायक हैं अन्य पांच नक्षत्र लक्ष्मीदायक हैं फिर पूंछके ऊपर तीन नक्षत्र श्रेष्ठ हैं ऐसे हलचक्रपर २८ नक्षत्र रखकर शुभ अशुभ फल विचारना चाहिये ॥ ४१ ॥ मृदुध्रुवक्षिप्रभेषु पितृवायुवसूडुषु । समूलभेषु बीजोप्तिरत्युत्कृष्टफलप्रदा ॥ ४२ ॥ और मृदुसंज्ञक ध्रुवसंज्ञक क्षिप्रसंज्ञक तथा मघा स्वाति धनिष्ठा मूल इन नक्षत्रोंमें बीज बोवना अत्यंत शुभदायक है ॥ ४२ ॥ भवेद्भत्रितयं मूर्ध्नि धान्यनाशाय राहुभात् ॥ गले त्रयं कज्जलाय वृद्धयै च द्वादशोदरे ॥ ४३ ॥ राहुके नक्षत्रसे तीन नक्षत्र मस्तकपर धरने वे धान्यका नाश करने आले हैं और गलेपर तीन नक्षत्र हैं उनमें जल थोड़ा वर्षे अथवा अन्नके कौवा लगजाता है उदरपुर बारह नक्षत्र वृद्धिदायक हैं।४३।।