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भाषाटीकास ०-अ० ६. (७७) निस्तंडुलत्व लांगूले भचतुष्टयमीरितम् । नाभौ वह्निः पंचकं यद्वीजोप्ताविति चिंतयेत् ॥४४॥ पूंछपर चार नक्षत्र हैं उनमें दाना कमपडता है फिर पांच नक्षत्रनाभिपर हैं उनमें अग्निका भय हो ऐसे बीज बोनेमें यह राहुचक्र भी विचारा जाताहे ।। ४४ । । - अथ रोगिस्नानमुहूर्तः। स्थिरेष्वादितिसर्पौत्यपितृमारुतभेषु च । न कुर्याद्रोगमुक्तश्च स्नानं वारेंदुशुक्रयोः॥ ४५॥ स्थिरसंज्ञक नक्षत्र और पुनर्वासु, आश्लेषा, रेवती, मघा, स्वाति इन नक्षत्रोंमें तथा चंद्र शुक्रवार विषे रोगसे छूटा हुआ पुरुषने स्नान नहीं करना चाहिये ॥ ४५॥ अथ नृत्यमुहूर्तः। उत्तरात्रयामित्रेंद्रवसुवारुणभेषु च ॥ पुष्यार्कपौष्णधिष्ण्येषु नृत्यारंभः प्रशस्यते ॥ ४६॥ तीनों उत्तरा अनुराधा ज्येष्ठा धनिष्ठा शतभिषा पुष्य हस्त रेवती इन नक्षत्रोंमें नाचना प्रारंभ करना शुभ है ।। ४६ ।। पूर्वार्धयुंजि षङ्कानि पौष्णभाद्रुद्रभात्ततः ॥ मध्यपुंजि द्वादशश्रेणीन्द्र्भान्नवभानि च ॥ ४७ ॥ रेवती आदि छह नक्षत्र पूर्वार्ध युंजा संज्ञक कहे हैं फिर आर्द्रा आदि बारह नक्षत्र मध्य युंजासंज्ञक कहे हैं और ज्येष्ठा आदि नव नक्षत्र परार्ध युंजासंज्ञकहैं ।। ४७ ।।