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(८० ) नारदसंहिता । और त्रिपुष्करयोगमें राजा गमन करे तो राजाने उस दोषकी शान्तिके वास्ते दो गौओं दान करना चाहिये । अथवा गो मुल्य देना चाहिये और त्रिपुष्करयोगके फकत् नक्षत्र मात्रसे दोष न ही हो सक्ता पुष्य नक्षत्रमें जो यात्रा आदि शुभकर्म किया जाय तहां कोई अनिष्ट योग होय तो पुष्य नक्षत्र उस दोषको दूर करसकता है और जो किसीप्रकारसे पुष्य नक्षत्र ही अशुभ दायक हो तो उसको कोई अन्य शुभयोग नहीं हटा सकता है और जो पुष्य बलयुक्त होय तो आठवें चंद्रमा हो अथवा चंद्रमा कूरग्रहसे युक्त हो इत्यादि सब दोषोंको नष्टकरता है संपूर्ण मंगल कार्यों को सिद्धकरता है । ५६ ।। ५७ ।। ५८ ॥ अथ नक्षत्राणां ताराः। रामा ३ ग्नि ३ ऋतु ६ बाणा ५ ग्नि ३ भू १ वेदा ५ ग्निशेरे ५ षवः ॥ नेत्र २ वाहु २ शरें ५ द्विं ३ दु १ वेद ४ वह्वय ३ ग्निशंकराः५९॥ अथ नक्षत्र तारा। अश्विनीके ३ तारे हैं कृत्तिका० ६ ७ भरणीके ३ रोहिणी ५ मृगशिर० ३ आद्रां १ पुनर्वसु ० ४ पुष्य०३ आश्लेषा ०5 मघा ०५पूर्वा फाल्गुनी०२ उत्तरा फाल्गुनी० २ हस्त० ५ चित्रा • १ स्वाती० १ विशाखा ०, ४ अनुराधा ० ३ ज्येष्ठा ० ३ मूलके ११ तारे हैं ॥ ५९ ॥ - ४