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नारदसंहिता ।

सिद्धांत, संहिता, होरारूप, तीन स्कंधों वाला वेद निर्मल
नेत्ररूप परमोत्तम ज्योतिःशास्त्र ऐसे यह ग्रंथ कहा है ॥ ४ ॥

अस्य शास्त्रस्य संबंधो वेदांगमिति कथ्यते ॥
अभिधेयं च जगतः शुभाशुभनिरूपणम् ॥ ५॥

यह ज्योतिःशास्र वेदांग कहलाता है जगत्का शुभ अशुभ
हालको वर्णन करताहे ॥ ५ ॥

यज्ञाध्ययनसंक्रांतिग्रहषोडशकर्मणाम् ॥
प्रयोजनं च विज्ञेयं तत्तत्कालविनिर्णयात् ॥ ६ ॥

यज्ञ, अध्ययन, संक्रांतिका पुण्यकाल,ग्रह षोडशकर्म, इन्होंके
यथार्थ समयका निर्णय (मुहूर्त ) ज्योतिःशास्रसे ही होता है ॥६॥

विनैतदखिलं श्रौतस्मार्तकर्म न सिध्यति ॥
तस्माज्जगद्धितायेदं ब्रह्मणा रचितं पुरा ॥ ७॥

इसके बिना संपूर्ण श्रुति स्मृतिमें कहा हुआ कर्म सिद्ध नहीं होवे
इस लिये बह्माजीने जगतकी सिद्धिके वास्ते पहिले ज्योतिःशास्त्र
रचा है ॥ ७ ॥

तं विलोक्याथ तत्सूनुर्नारदो मुनिसत्तमः॥
उक्त्वा स्कंधद्वयं पूर्वं संहितास्कंधमुत्तमम् ॥ ८॥

तिसको देखकर बालाजीके पुत्र नारद मुनि पहिले दोस्कंध
बनाकर ॥ ८ ॥

वक्ष्ये शुभाशुभफलज्ञप्तये देहधारिणाम् ॥
होरास्कंधस्य शास्त्रस्य व्यवहारप्रसिद्धये ॥ ९ ॥