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भाधाटीकास ०--अ० ९. (८७) पूषा ४ अश्विनीकुमार ५ धर्मराज ६ अग्नि ७ ब्रह्मा ८ चंद्रमा ९ अदिति १० बृहस्पति ११ विष्णु ११ सूर्यं १३ त्वष्टा १४ वायु १५ ये पंदरह मुर्हूत रात्रिके हैं अर्थात् जैसे दिनके पंदरह भाग कियेहैं तैसेही रात्रिके १५ भाग कर लेना और २ घडीका एक मुहूर्ते होता है और दिनमान रात्रिमान्तीस घडीसे कमज्यादै होवें तो इनमेंसे एक २ मुहूर्त भी दोदो घड़ीसे कमज्यादै समझलेने चाहिये और इनमें वार आदि क्रमसे जो मुहूर्त, अशुभ होते; उनको कहतेहैं ॥ २ ॥ ३ ॥ ४ ॥ अर्यमा राक्षसब्राह्मौ पित्र्याग्नेयौ तथाभिजित् ॥ राक्षसापो ब्रह्मपित्र्यौ भौजंगेशाविनादिषु ।। ४ ॥ वारेषु वर्जनीयास्ते मुहूर्ताः शुभकर्मसु । अन्यानपि तु वक्ष्यामि योगानत्र शुभाऽशुभान् ॥ ६ ॥ अर्यमा मुहूर्त सूर्यवारमें अशुभहै और सोमवारमें राक्षस, बह्मा ये अशुभहै, मंगलमें पितर, अग्नि ये अशुभहैं, बुधमें अभिजितमुहूर्त अशुभ है,बृहस्पतिको राक्षस ओर उदक अशुभ, शुक्क को बह्मा पितर अशुभ, शनिको सर्प, शिव ये मुहर्तु अशुभ हैं । रविवार आदिकों में ये मुहूर्त शुभकर्मौमें यतनकरके वर्जदेने चाहियें।अब यहां अन्यभी शुभअशुभ योगोंको कहतेहैं । । ५ ।। ६ ।। । सूर्यभाद्वेदगोतर्कदिग्विश्वनखसंमिते ॥ चंद्रर्क्षे रवियोगाः स्युर्दोषसंधविनाशकाः ॥ ७ ॥ इति श्रीनारदीयसंहितायां मुहूर्ताध्यायो नवमः॥ ९॥