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९२ ) नारदसंहिता । अष्टमी शुक्रवारे तु नवम्यामर्कवासरः ॥ पंचमी भौमवारे तु दग्धयोगाः प्रकीर्तिताः ॥ । १७ ॥ शुक्रवारको अष्टमी रविको नवमी पंचमीको मंगलवार हो तो ये दग्धयोग कहे हैं ॥ १७ ॥ दग्धयोगाश्च विज्ञेया पंगुयोगाभिधा अमी । यमर्क्षमर्कवारेब्जे चित्रा भौमे तु विश्वभम् ॥ १८॥ बुधे धानिष्ठार्यमभं गुरौ ज्येष्ठा भृगोर्दिने ॥ रेवती मंदवारे तु दग्धयोगा भवंत्यमी॥ १९॥ ये दग्धयोग हैं इनको पंगुयोग भी कहते हैं रविवारको भरणी सोमको चित्रा मंगलको उत्तराषाढ बुधको धनिष्ठा बृहस्पतिको उत्तराफाल्गुनी शुक्रको ज्येष्ठा शनिको रेवती हो तो ये दग्धयोग कहे हैं ॥ १८ ॥ १९ ॥ विशाखादिचतुर्वर्गमर्कवारादिषु क्रमात् ॥ उत्पातमृत्युकाणाख्याः सिद्धियोगाः प्रकीर्तिताः ॥२०॥ और विशाखा आदि चार नक्षत्रका वर्ग सूर्य आदि ७ वारोंमें यथाक्रमसे उत्पात १ मृत्यु २ काण ३ सिद्धि ४ ये चार योग होते हैं जैसे कि रविवारको विशाखा होतो उत्पात अनुराधा मृत्यु ज्येष्ठा काण मूल हो तो सिद्धि योग होता है फिर सोमको पूर्वाषाढामें उत्पात उत्तराषाढामें मृत्यु ऐसा क्रम जानना ऐसे यही क्रम सब चारोंमें करना २८ नक्षत्रमें ७ वारेंमें ये चारों योग ठीक २ होवेंगे । २० ॥ । 8A