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सामुद्रिकशास्त्रम् ।। भा पाटीकासहितम् ।। निह दीख पड़े तो वह स्त्री हो अथवा पुरुष सो धनवान् और सुखी अर्थ-जिसके हाथमें शक्ति बरछीका चिह्न हो अथवा तोमर खड़- होवे तथा कमलके चिह्नसे पुरुष राजा और स्त्री रानी होती है, धनु- के सदृश कुछ विलक्षण मुष्टीमें हलप्रवेशका योग हो, तोमर नाम। पके चिह्नसे पुरुप धनुर्धारी होता है, तलवारका चिह्न होनेसे पुरुष । खङ्गाकार प्रतीत हो वा बाणका चिह्न हाथके बीचमें प्रगट दीख पडे महावीर संग्रामकर्ता होता है, आठकोनका चिह्न होनेसे राजकुलमें। तो ये तीनों चिह्न होनेसे श्रेष्ठ राज्यको मनुष्य प्राप्त होवे, इनमेसे उत्पन्न होनेसे राजा अथवा भूमिपति होता है ॥ १८ ॥ यदि एकभी चिह्न होवे तो सामान्य राज्यको प्राप्त होवे, दो चिह्नसे शंखादिचिह्न । । राज्य ऐश्वर्य भोग करे; रथ, चक्र, ध्वजा इनके आकार चिह्न प्रगट शंखचक्रध्वजाकारो नासाकारश्च दृश्यते ॥ दीख पडे तो इन्द्रसमान राज्य प्राप्त होवे ॥ २१ ॥ अंकुशचह्न । सर्व विद्याप्रदानेन बुद्धिवान्स भवेन्नरः ॥ १९ ॥ अंकुशं कुण्डलं चक्रं यस्य पाणितले भवेत् ॥ अर्थ-जिसके हाथमें शंख, चक्र, ध्वजा इनके आकारवाला यस्य राज्य महाश्रेष्ठं सामुद्रवचनं यथा ॥ २२ ॥ चिह्न हो और नासिकाके आकारवाला चिह्न दीख पडे तो सम्पूर्ण । विद्याका पढानेवाला, बुद्धिवान् मनुष्य होवे तथा यदि शंखका अर्थ-जिसके हथेलीमें अंकुश, कुंडल, चक्र ये तीनों चिह्न चिह्न होते तो वेदवेदांतका ज्ञाता हो, नासिकाके आकारवाला चिह्न प्रगट प्रतीत हों तो मनुष्य चक्रवर्ती राजा होवे, यदि एक चिह्न हो । हो तो सांसारिक व्यापारविद्यामं निपुण होवे ॥ १९ ॥ तो सामान्य राज्य भोगे, दो चिह्न हों तो कुछ विशेष राज्यका - त्रिशूलचिह्न।। ऐश्वर्य भोगे यह क्षीरसमुद्रवासी नारायणका वचन है ॥२२॥ गिरिकंकणादिचिह्न । त्रिशले करमध्ये तु तेन राजा प्रवर्तते ॥ गिरिकंकणयोनीनां नरमुंडघटादिकम् ॥ यज्ञे कर्म च दाने च देवद्विजप्रपूजने ॥ २० ॥ करे वै यस्य चिह्नानि राजमंत्री भवेन्नरः ॥ २३ ॥ अर्थ-जिसके हाथके बीच त्रिशूलका चिह्न हो तो राजा होनेका लक्षण जानना अर्थात् पुरुष वा स्त्रीके हाथके बीच शुद्ध त्रिशूल प्रगट | अर्थ-जिसके हाथमें गिरि (पर्वत), कंकण, योनि, नरमुंड ( कपाल),घट (घडा) इनका प्रगट चिह्न होवे तो वह मनुष्य राज- हो तो अवश्य राजा होवे है, त्रिशूलमें यदि सन्देह हो अर्थात् शुद्ध प्रगट न होवे तो राजाके आश्रय होके राजसुख भोगे तथा राजा मंत्री होवे, तीनों चिह्न होने से राजमंत्री अवश्य होवे और जो इन- वा राजाका कर्मचारी होकर नाना प्रकारके यज्ञ करे, दान करे, मॅसे जो पांचों चिह्न हों तो महामंत्री होवे, दो अथवा एक चिह्न हो। देवता आर ब्रह्मणांका पूजन करे ।। २० । । तो राजमंत्रीके समान ऐश्वर्यवाला होवे ॥२३॥ | सूर्यचन्द्रादिचिह्न ।। शक्तितोमरादिचिह्न । शक्तितोमरवाणैश्च करमध्ये सुदृश्यते ॥ सूर्यचन्द्रलतानेत्र अष्टकोणत्रिकोणकम् ॥ 'रथचक्रध्वजाकारी शक्रराज्ये लुभेन्नरः ॥ २।।।। मन्दिरं गज अश्वानां चिह्न धनिसुखी भवेत् ॥ २४॥ पलक हानि डट/