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सामुद्रिकशास्त्रम् । अर्थ-जिसके हाथमें सूर्य, चन्द्रमा, लता ( वेलि), नेत्र, अष्ट- कोण, त्रिकोण, मन्दिर, हाथी, घोडा इनमेसे एक चिह्नभी होवे तो। मनुष्य धनी सुखी होवे, सूर्यका चिह्न हो तो मनुष्य तेजवान् होवे. चन्द्रमाका चिह्न होवे तो उसका नामप्रकाश होवे, वेलिका चिह्न हो तो उसका यश जगत्में फैले, आठ कोने, तीन कोने और मन्दिरका चिह्न हो तो वह मनुष्य कूप, बावडी, तालाव, देवालय, मन्दिर । बनानेवाला होवे, हाथीका चिह्न होवे तो उसके द्वारपर हाथ बंधे रहें, अश्व (घोडे) का चिह्न हो तो उसके द्वारपर घोडे बंधे रहें।॥२४॥ यवाकारचिह्न ।। अंगुष्ठोदरमध्यस्थो यो यस्य विराजते ॥ उत्पन्नो भुवि भोगी स्यात्स नरः सुखमेधते ॥२५॥ अर्थ-जिसके हाथके अंगठेके मध्यमें जौका चिह्न प्रगट दीख पड़े। तो वह मनुष्य जन्मसे मरणपर्यन्त पृथ्वीपर सुखी भोगी होवे॥२८॥ । तथा च ।। मध्यमातर्जनीभूले यो यस्य च दृश्यते ॥ धनवान्सुखभोगी स्यात्पुत्रदारगृहादिषु ॥ २६॥ अर्थ-जिसके मध्यमा ( बीचकी अंगुली) अथवा तर्जनी (अंगूठेके पासकी अंगुली) के मूलमें जीका आकार प्रगट दीख पडे तो वह मनुष्य धनी, गुणी, माननीय तथा सुखी होकर लोकमें प्रसिद्ध होवे और प्रसन्न होवे, पुत्र, स्त्री, घर आदिसे सुख भोग प्राप्त होवे ॥२६॥ । तथा च ।। अनामिकापूर्वमूले कनिष्ठादिक्रमेण तत् ॥ आयुष्यं दश वर्षाणि सामुद्रवचनं यथा ॥२७॥ अर्थ-यदि किसीके हाथके बीचमें अनामिका ( छोटी अंगुलीके पासकी अंगुली) और कनिष्ठा ( छोटी अंगुली ) के पूर्व मूलमें भाषादीकासहितम् । जोके आकारवाला चिह्न प्रत्यक्ष दीख पडे तो दश वर्षकी आयुका लक्षण जानना, क्षीरसमुद्रशायी भगवान्का ऐसा वचन है। भावार्थ यह कि यदि कनिष्ठा ( छोटी ) अंगुलीके प्रथम पूर्वभागसे लेके अनामिका अंगुलीके पूर्वभाग मूलतक आयुरेखा होनेसे दश वर्ष- पर्यन्त जीवनका लक्षण आयुरेखामें प्रतीत होवे। यदि रेखाके बीच- में कई रेखा टूट गई होंय, नीचेकी ओर झुकी हों तो जलमें डूबनेका ज्ञान होवे, यदि आयुरेखाके ऊपरसे चढके नीचे झुकी हों तो वृक्ष वा केले कोठेपरसे गिरे, कनिष्ठासे तर्जनीतक अपूर्ण रेखा हो तो १२० वर्षकी आयु होवे ॥ २७॥ । ऊर्ध्वरेखाफल । अंगुष्ठस्याप्यूर्व रेखा वर्तते नृपतेः शुभम् ।। सेनापतर्धनाढयश्च मध्यमायुर्नरो भवेत् ॥२८॥ अर्थ-जिस मनुष्यके अंगूठेके ऊपर चढके ऊध्वगामी रेखा दीख पडे तो जानिये वह मनुष्य बडा उत्तम राजराजेश्वर होवे और बहुतसी सेनाका स्वामी, तथा धनवान होवे और मध्यम आयु अर्थात् पचास साठ वर्ष जीवन रखकर वह मनुष्य सम्पूर्ण भोग करके उत्तम तीर्थमें शरीर त्याग करे ॥ २८॥ तथा च । तर्जनीमूलपर्यन्तमूर्ध्वरेखा च दृश्यते ॥ राजदूतो भवेत्तस्य धर्मनाशः प्रजायते ॥२९॥ अर्थ-एवं तर्जनी ( अंगूठेके पासकी अंगुली ) के मूलपर्यन्त यदि ऊर्ध्वं ( खडी ) रेखा मिलकर प्रगट होय तो राजदूत होनेका चिह्न है। सिपाही हो खङ्गधारणपूर्वक नाना प्रकारकी सुधि ( खबर) ले आनेका अधिकार प्राप्त होवे और उसके धर्मका क्षय होवे नी(अंगूठेके अनसनाका स्वास।