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१० सामुद्रिक शास्त्रम् । भोपाटीकासहितम् ।। अर्थात् जीवनपर्यन्त राजकीय कर्म करनेमें चंचल होके स्वस्थ नहीं अर्थ-कनिष्ठा अंगुलीके मूलमें यदि रेखायें हों तो दीक्षा दान होनेसे अपने वर्णाश्रमके यावत् उचित धर्मकर्मकी चेष्टासे रहित आदि फलका देवे, एक रेखा हो तो दाता और परोपकारी होवे, दो के मंमामें यन्किचित विषयभोग करके देह छाड देव ॥ २९॥ रेखा हां ता यथावत् धर्मशील, माननीय, पूजनीय, ज्ञानवान होवे, मध्यमामूलपर्यन्तमूध्वरेखा च दृश्यते ॥ तीन रेखा हो तो महा ऐश्वर्य, राजभोग, सुखसम्पत्ति प्राप्त होवे, पुत्रपौत्रादिसम्पन्नी धनवान्स सुखी नरः॥३०॥ चार रेखा हों तो बडा विद्यावान्, पंडित, ज्ञानी व बुद्धिवान होवे अर्थ-जिसके हाथकी बीचकी अंगुली जडतक ऊर्ध्व रेखाका । पांच रेखा हों तो लोकमें माननीय और प्रतिष्ठावान् होवे, छः रेखा चिह दीख पडे और प्रत्यक्ष प्रतीत हो तो वह प्राणी अपने वंशमें हो तो सुख प्राप्त होवे, सात रेखा हों तो संसारमें सामान्य सखी मानी होवे ॥ ३३॥ । वडा भाग्यवान, पुत्रपौत्रादिसम्पन्न, धनवान और सुखी होवे अर्थात् लोकमें बड़े आनन्दसे भोग विलास करके जीवनपर्यन्त | कनिष्ठामूलसंयुक्ता त्रिरेखा यस्य दृश्यते ॥ आनन्दसे रहे ॥ ३० ॥ एकं युग्मं तृतीयं च चतुर्थ वाणसंयुतम् ॥ ३४॥ अनामिकामूध्व रेखा व्यवसायधनागमः ॥ अर्थ-जिसके हाथमें कनिष्ठा (छोटी) अंगुलीके मूलमें यदि सुखदुःखेन जीवेन पुत्रपौत्रगृहादिषु ॥ ३१॥ तीन रेखायें प्रगट दीख पडें तो संसारके बीच धर्म, अर्थ, काम ये अर्थ-जिसके अनामिका ( छोटी अंगुलीके समीपकी अंगुली)। तीन पदार्थ भोग करनेका चिह्न जानना, यदि एक रेखा हो तो के मूलपर्यंत ऊर्ध्व रेखा प्रतीत होवे तो व्यवसाय ( व्यापार) अर्थात् धनी हो, दो रेखा तो धर्मात्मा हो, तीन रेखा हों तो भोगी होवे, नाना प्रकारके उद्यम करके धनका आगम होवे आर पुत्रपात्रसे चार रेखा हों तो बहत स्त्रियांसे भोग करनेवाला हाव, पाच रखा। युक्त होके घरमें कुछ सुख और दुःखको प्राप्त होता हुआ मनुष्य हों तो ज्ञानी, माननीय, यशस्वी और बुद्धिवान् होवे, कनिष्ठा अगु- अपना जीवन व्यतीत करे ॥ ३१ ॥ लीके मूलतले जितनी रेखायें हों उतनी स्त्रियोंसे भोग विलास कर- यस्य पाण्यध्वं रेखा स्यात्कनिष्ठामूलसंस्थिता ॥ नेमें आवे, एवं यदि स्वीकी कनिष्ठा अंगुलीके नीच मूल तले जित- नेमें आये, एवं याद स्रा ते नराः प्रदेशेषु शतमायुर्लभान्ति वै॥३२॥ नी रेखायें ऊपर चढकर प्रतीत होवे उतनेही पुरुषोंकि साथ उस । अर्थ-जिसके हाथमें कनिष्ठा (छोटी) अंगुलीकी जड़में ऊध्र्व स्वीका संयोग होवे ॥ ३४ ॥ ( खडी) रेखा प्रगट दीख पडे तो ऐसी रेखावाले मनुष्य सी वर्ष | आयुरेखाविचार ।। पर्यन्त अपना जीवन व्यतीत करते हुए संसारमें निर्वाह करें ॥३२॥ आयुर्वले भवेद्वेखा तर्जनीमूलसंस्थिता ॥ । तथा च । शतवर्ष भवेदायुः सुखमृत्युर्न संशयः॥३५॥ अर्थ-कनिष्ठाके मूलतले जो रेखायें प्रगट प्रतीत होवें तो उन् विद्यामानापमानौ च अंगुल्या मूलसंस्थिता ॥ ३३॥ रेखाओंके चिह्नसे सुख, दुःख, जन्म, मरण और आयुका परिज्ञान दीक्षादानं यथा धर्मपदवी सुखमेव च ॥