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१२ सामुद्रिकशास्त्रम् । भाषादीकासहितम् । होवे है, यदि कनिष्ठाके मूलसे चलके तर्जनी अंगुलीके बीच मूळसे अर्थ-हाथके बीचमें जो दो रेखायें प्रायः होती हैं उनके लक्षणको मिलकर प्रतीत होनमें एक सौ वर्षकी आयु होवे और वह प्राणी । कहते हैं।अंगूठा और तर्जनी अंगुलीके बीचसे चलकर दो रेखा होती सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करे, यदि मध्यमाके मूलतक आयुरेखा । हैं उनमें एक तो हाथके बीचसे पीछे पहुंचेकी ओर से घूमती हुई रहे तो पचहत्तर वर्षकी आयु होवे ॥ ३५॥ जाती है, दूसरी रेखा कनिष्ठा ( छोटी ) के सामने ( मूल ) से आयु- मध्यमामूलपर्यन्तमायूरेखा च दृश्यते ॥ रेखामें मिलती हुई नीचेकी ओर चलकर स्थित होवे और पूर्ण होवे तो जानिये कि यह अपने पितासे उत्पन्न हुआ है, यदि इस चतुर्दशचतुर्विंशदायुर्बलविनाशनम् ॥ ३६॥ अर्थ-यदि आयुरेखा कनिष्ठिका अंगुलीकी मूलसे लेके मध्यमा रेखामें अपूर्णता न हो तो किसी दूसरे से उनकी उत्पत्ति जानना । तथा यदि अंगूठा और तर्जनीके बीच दो रेखा मिलके रहे तो जा- अंगुलीके मूलपर्यन्त दीख पडे तो चौदह और चौवीस मिलाकर निये कि मातापितामें बड़ा प्रेम था। यदि पृथक् रेखा प्रतीत हो अडतीस वर्षकी आयुमें उसका मरण होवे ऐसा कहना ॥ ३६॥ तो जानना कि दोनोंमें प्रीति नहीं रहती, कलह व अनबन रहती आयुर्बलं भवेद्रेखाऽनामिकामूलसंस्थिता ॥ है। यदि पिताकी रेखा छोटी नीचेकी ओर झुकके चली हो तो पि- त्रिदशं च त्रिषष्टिश्च आयुर्बलविनाशनम् ॥ ३७॥ ताकी अल्पायु जानना । यदि रेखा मोटी लाल चिह्न उपर हाथके अर्थ-यदि आयुरेखा कनिष्ठिका अंगुलीकी मूलसे लेके अना- प्रतीत हो तो बडी आयु पिताकी जानना । यदि मातृरेखा जो मिका अंगुलोके मूलपर्यन्त स्थित होवे तो तेरह वर्षकी आयु जान- । पहुँचेकी ओरसे होके ऊपरमें गई हो सो झ्यामतासे युक्त हो तो मा- ना, यदि दो जो मात्र दीख पडे तो वेसठ वर्षकी आयु जानना॥३७॥ ताकी अल्पायु जानना। यदि वही रेखा लाल रंगकी हो और मोटी बाल्यमृत्युचिह्न । व पूर्ण हो तो माताकी बडी आयु जानना । यदि माता पिताके दो आयुहीनं यथा स्वल्पं लघु दीर्घ च दृश्यते ॥ रेखाके बीच ऊपरके भागमें त्रिशूल हो तो माता पिता स्वर्गवासी ते नराः सुखदुःखेन बाल्यमृत्युर्नःसंशयः॥३८॥ देवता होके देवलोक में जावें ॥ ३९ ॥ अर्थ-जिसके हाथमें आयुकी रेखा क्षीण अल्प और छोटी बडी । मातृपितृरेखाविचार ।। तथा कटी हुई दीख पडे तो अल्पायु जानना, जिनके एसी रेखा प्रतीत हो वे मनुष्य सुख और दुःखसे युक्त होके बाल्यावस्थामें मातृरेखा करे चैव एकैकं युग्ममेव च ॥ निःसन्देह मृत्युको प्राप्त होवें ॥ ३८ ॥ एकैकं युग्ममादाय युग्मरेखा च दृश्यते ॥ ४०॥ जारजातलक्षण । अर्थ-दो रेखा माता और पिताकी हाथके वीचमें पृथक पृथक होती हैं। माताकी रेखा तर्जनी और अंगूठेके बीचसे चलकर पहुँ- चेमें मिलके रहती है और पिताकी रेखा तर्जनी और अंगूठेके वचसे करमध्ये स्थित रेखा पितुर्वशसमुद्भवः ॥ पूर्णरेखा पितुवैशोऽधैरेखा परवंशकः ॥ ३९ ॥