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१६ सामुद्रिकशास्त्रम् । और सीपीके समान बड़ा और चम- कीला ललाट होय तो आचार्यपदुको देनेवाला जानना ॥४७॥ । भालस्थलस्थिताभिः सुशिराभिरधमाः सदैव पापकराः ॥ अभ्युन्नताभिराढ्यास्ताभिरपि स्व- स्तिकाकृतिभिः॥४८॥ अर्थ-जिसके मस्तकपर नसोंवाली रेखायें स्थित हों वह पुरुष अधम और पापकर्म करनेवाला होता है तथा जिसके मस्तकमें। नसे ऊंची रेखाओंवाली होवें और स्वस्तिक ( साथियों) के सदृश । हों तो वह पुरुष धनाढ्य होता है ॥ १८ ॥ स्वल्पैर्धर्मप्रवणा धनहीनाः संवृतैस्तथा विषमैः॥ निम्नैः केवलबंधनवधभाजः क्रूरकर्मणः ॥४९॥ अर्थ-छोटे लिलारवाले पुरुष धर्मिष्ट होते हैं और ढके, आँधे । व ऊंचे नीचे लिलारवाले निर्धनी होते हैं। नीचे लिलारवाले बन्धन । और वध पानेवाले तथा खोटे काम करनेवाले होते हैं ॥ ४९ ॥ ललाटोपसृतास्तिस्रो रेखास्तु शतवार्षिणाम् ॥ वृषत्वस्याच शतभरायुः पंचनवत्यथ॥५०॥ अर्थ-जिसके ललाटके ऊपर तीन रेखायें प्रगट दीख पड़े तो। सो वर्षकी आयु जानना । यदि ललाटके ऊपर चार रेखायें प्रगट दीख पड़े तो पचानवें वर्षकी आयु जानना ॥ ५० ॥ अरेखेणायुर्नवतिर्विच्छिनाभिश्च पुंश्चला॥ केशांतोपगताभिश्च अशीत्यायुरो भवेत् ॥५१॥ अर्थ-जिसके ललाटके ऊपर एक रेखाभी नहीं होय तो नब्वे यर्पकी आयु होय । यदि ललाटके उत्तर बहुत रेखायें छिन्न भिन्न १ तीत हों तो वह मनुष्य व्याभिचार करनेमें तत्पर रहनेवाला होता हैं। भाषाटीकासहितम् ।। तथा यदि एक रेखा ललाटके ऊपर वालों के मूलमें प्रगट दीख पडे तो अस्सी वर्षकी आयु उसकी होवे ॥५१॥ पंचभिः पंचभिः षभिः पंचाशदू बहुभिस्तथा ।। चत्वारिंशच्च चक्राभिस्त्रिशद्भिर्लग्नगामिभिः॥५२॥ । अर्थ-जिसके ललाटपर पांच पांच (दश) रेखा अथवा पांच छः (ग्यारह ) रेखा वा पंचाशद् ( पचास ) यद्वा बहुत रेखायें प्रगट प्रतीत होवें तो चालीस वर्षकी आयु होती है तथा ललाटके ऊपर टेढी होकर एक रेखा धुकुटोके ऊपर प्रतीत होय तो तीस वर्षकी आयु निश्चय जानना॥५२॥ | विंशतिवमवक्राभिरायुः क्षुद्राभिरक्षकम् ।। | वामार्द्धथुबालेन्दुभं भुवौ वा ललाटके ॥५३ ।। अर्थ-जिसके ललाटकी रेखा वामभागमें विशेष हों वा टेढी छोटी छोटी होंय तो वीस वर्षकी आयु जानना तथा भृकुटीके ऊपरकी मध्यरेखा मार्थप होके चन्द्रमाकी सदृश रेखा प्रतीत हो तो परिपूर्ण आयु एक सौ वीस वर्षकी जानना अथवा धुकुटीके ऊपर रेखा नहीं होय, द्वितीयाके चन्द्रमाके समान और मोटी रेखाभीनहीं होय, अति सुक्ष्म होय तो अति अल्प ( बहुत थोडी ) आयु जानना ॥ ५३॥ शुभमहुँन्दुसंस्थानमर्तुगः स्यादलोमशम् ।। नृपतीनां भवेचिह्न ललाटे शुभदर्शनम् ॥५४॥ अर्थ-जिसके ललाटमें भ्रकुटीके ऊपर एक रेखा प्रगट दीख पडे तथा भ्रकटीके बीच रोममिश्रित रखा दुखि पड़ ता राजा। होनेका चिह्न और ऐश्वर्य भोगके चिह्न जानना ॥ ४ ॥ जीवति वषण्यशीतिः केशान्तोपगते रेखे॥ भालेन वर्षनवतिः पुरुषो रेखाचितेन पुनः॥५५॥ सामुदि*• १