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१८ सामुद्रिकशास्त्रम् । भोपाटीकासहितम् ।। अर्थ-जिसके केशोंके अंततक दो रेखा होवें तो अस्सी वर्षकी | अर्थ-धनी मनुष्योंके शिरमें पांच अंगुलप्रमाण दाहिनी ओरको आयुतक उसका जीवन होवे । जो अनेक रेखाओकरके युक्त ललाइ झुकी हुई भौंरी होवे तो सुख देनेवाली जाननी और वही भरी जो होवे तो यह पुरुष नवे वर्षपर्यन्त जीवन धारण करे ॥५६॥ वाई ओरको झुकी हुई होवे तो दुःख देनेवाली जानना ॥ ५९॥ विषमो धनहीनानां करोटिकामश्चिरायुषो मूर्ख ॥ । मुखाकृतिवर्णन। । द्राधिष्ठो दुःखवतां चिपिटो मातृपितृघ्नानाम् ॥५६॥ । जननीमुखानुरूपं मुखकमलं भवति यस्य मनुजस्य ॥ प्रायो धन्यः स पुमानित्युक्तमिदं समुद्रेण ॥ ६० ॥ अर्थ-विषम ( उंचा नीचा) मस्तक धनहीन पुरुषोंका होता है । अर्थ-जिसका मुखारविन्द माताके मुखके समान हो वह मनुष्य और बहुत आयुवालेका मस्तक खोपडीके आकारवाला होता है। प्रायः धन्य ( सुखी, भोगी और यशस्वी ) होता है ऐसा समुद्रने बहुतही लम्बा मस्तक दुःख पानेवाले पुरुषोंका होता है तथा वर्णन किया है ॥ ६० ॥ माता पिताका मारनेवाला पुरुष जो होता है उसका मस्तक चिप- समवृत्तमवलं सूक्ष्म स्निग्धं सौम्यं समं सुरभिवदनम् ॥ टासा होता है ॥५६॥ सिंहेभनिभं राज्यं सम्पूर्ण भोगिनां चेति ॥ ६१ ॥ अंगं यद्यपि पुंसां स्त्रीणां वा पिशितविरहितं सूक्ष्मम्।। अर्थ-जिस मनुष्यका मुख सब ओरसे गोल, भयानक, बड़ा, पुरुषं शिरावनद्धं तत्तदनिष्टं परं ज्ञेयम् ॥१७॥ चिकना और दर्शनीय अर्थात् देखने योग्य, समान, सुगन्धित, अर्थ-जिन मनुष्योंका अथवा स्त्रियोंका जो अंग मांसहीन सिंह और हाथीके तुल्य होय वह राज्य करनेवाला होता है तथा ( पतला ), खरदुरा, चमकती हुई नसोंवाला होवे तो शुभ सब प्रकार के ऐश्वर्य भोगियोंका ऐसाही मुख होता है ॥ ६१ ॥ नहीं जानना ॥२७॥ भीरुमुखं पापानां निम्नं कुटिलं च पुत्रहीनानाम् ॥ आयुःपरीक्षा पूर्व नृणां लक्षणं तदा ज्ञेयम् ॥ । दीर्घ निर्दव्याणां भाग्यवतां मंडलं ज्ञेयम् ॥ ६२ ॥ व्यर्थ लक्षणज्ञानं लोके क्षीणायुषां यस्मात् ॥५८॥ अर्थ-पापी पुरुषोंका मुख डरावना होता है । पुत्रहीन पुरुपोंका अर्थ-पहले मनुष्योंकी आयुका निश्चय कर लेवे तब हाथकी | मुख नीचा और कुटिल ( टेढा) होता है । तथा निर्धन जनोंका सुख मुख नीचा और कुटिल टढा) है। रखाके ज्ञानसे लक्षण जाने । जिन मनुष्योंकी आयु क्षीण हो उनके लम्बा होता है । भाग्यवान् मनुष्योंका सुख गोल होता है ॥ ६२॥ लक्षणका जानना व्यर्थ है अर्थात् बहुत कमती आयुवाले पुरुषको दौर्भाग्यवती पृथुलं पुंसां स्त्रीमुखमपत्यरहितानाम् ॥ लक्षण झुठभी हो जाता है॥५८॥ चतुरस्त्रं धूर्तानामतिद्वस्वं भवति कृपणानाम् ॥६३॥ भाग्यवतां पंचांगुलिशिरः सुसौख्याय दक्षिणावर्तः ॥ अर्थ-जिसका मुख चौडा होवे उसको अभागा जानना । जिस प्रायः पुंसां वामावर्ती दुःखाय पुनरेषः ॥ ५९॥ मनुष्यका मुख स्त्रीके मुखके समान हो उसको सन्तानहीन जानना।