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सामुद्रिकशास्त्रम् । भाषाटीकासहितम् ।। जिसका मुख चौकान हो उसको धूर्त ( मायावी) जानना, तथा शुभमढुंन्दुसंस्थाने मृत्युगः स्यादलोमशः ॥ जिसका मुख छोटा हो उसको कृपण ( कंजूस ) जानना ॥ ६३ ॥ ओष्ठवर्णन । अभामले कर्णयोगं समं मृदुसमाहितम् ॥ ६७॥ अर्थ-जिसके दोनों कान द्वितीयाके चन्द्रमाके समान होय और आरक्तावधरी श्रेष्ठौ मांसत्ववर्तुले मुखम् ॥ । ऊंचे कोमल तथा बराबर होवं, रोम नहीं होवें और भले व श्यामता कन्दपप्पममा दन्ता भाषितं काकासमम् ॥ ६४।। लिये न होवे ऐसे कान शुभ फलके देनेवाले जानने ॥ ६७ ।। अर्थ-जिसके ओठ लाल लाल हो तो फल श्रेष्ठ जानना और जिसके ओके ऊपरका मांस दलदार होके मुख गोल होवे तो श्रेष्ठ । स्निग्धा नीलाश्च मृदवो मूर्खजाः कुटिलाः खराः ॥ फल जानना । जिसके दांत कुंदके फूलके समान श्वेत वर्ण हों तो स्त्रीणां शिरसम श्रेष्ठं पादे पाणितले तथा ॥ ६८ ॥ श्रेष्ठ फल जानना । जिसका संभाषण कोकिलाके स्वरके समान हो। अर्थ-जिस मनुष्यके केश चिकने, काले, कोमल, टेढे, खरदरे, ती श्रेष्ठ फल जानना अर्थात् ये लक्षण सुखके देनेवाले जानने ॥६॥ स्त्रियांके शिरके बालोंके समान होवे तो श्रेष्ठ जानना । तथा चरण- दाक्षिण्ययुक्तमशठहंसशब्दसुखावहम् ॥ के ऊपर व हाथके तलपर अर्थात् हाथकी पीठपर पूर्व कहे अनुसार नासा सभा समपुटा स्त्रीणां तु रुचिरा शुभा ॥६५॥ होवें तो श्रेष्ठ फलके देनेवाले जानने ॥ ६८ ॥ अर्थ-जिसका मुख दक्षिणावर्त ( दाहिनी ओरको घूमा हुआ) बिम्बाधरो धनाढ्यः प्रज्ञावान् पाटलाधरो भवति ॥ महाप्रेमयुक्त ( कोमल ), हंसके समान शब्दवाला होवे तो ऐसा मुख प्रायो राज्यं लभते प्रवालवणधरस्तु नरः ॥ ६९॥ सुखदायक होता है और जिसकी नासिका ऊंची, नासिकाके छिद्र । अर्थ-बिम्ब ( कुंदरू ) के समान लाल लाल होठवाला पुरुष लाल वर्ण हों तो शुभ फल जानना । स्त्रियोंका मुख रुचिर हो तो। धनवान होता है । गुलाबके फूलके समान वर्णवाले होठोंका पुरुष शुभ जानना ॥ ६ ॥ बुद्धिवान होता है और मुंगेके रंगके समान लाल लाल होठवाला नीलोत्पलनिभं चक्षुर्नासालोनलंबकः ॥ पुरुष प्रायः राज्यको पाता है । ६९ ॥ न पृथुबालेन्दुनिभी ध्रुव चाथ ललाटके ॥ ६६ ॥ पीनोष्ठः सुभगः स्यालंवोष्ठो भोगभाजनं मनुजः ॥ अर्थ-जिसके दोनों नेत्र नील (श्याम ) कमलके समान होवे। अतिविषमोष्ठो भीरुलध्वोष्ठो दुःखितो भवति ॥ ७० ॥ और नासिकाके समीपतक पहुँचे हुए नेत्र बहुत लंबायमान न होवें । अर्थ-जिसके होठ मोटे हों तो वह पुरुप अच्छे चाल चलनवा- द्वितीयाके चन्द्रमाके समान धुकुटी ( भौहें ) नहीं होवें परन्तु धनु- ला होता है । जिस मनुष्यके होठ लम्बे हों वह भोग भोगनेवाला धुकुटी ललाटके ऊपर सुन्दर प्रतीत होवे तो बहुत उत्तम फल जा होता है। जिसके होठ विषम (कठोर ) देखनेमें अच्छे न हों वे नना । भावार्थ यह कि जो अंग देखने में सुन्दर सुडौल अथवा दशै भयभीत होनेवाले पुरुपके जानने अर्थात् वह पुरुष डरपोक होवे । छोटे होठवाला पुरुष दुःखी होता है ॥ ७० ॥ नीय होवे तो भाग्यको उदय करके सुखी करता है ॥६६॥