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सामुद्रिक शास्त्रम् ।। नासिकालक्षण । उन्नतनासः सुभगो गजनासः स्यात्सुखी महार्था- ढयः ॥ ऋजुनासो भोगयुतांश्चरजीवी शुष्क नासः स्यात् ॥७९॥ अर्थ-जिस मनुष्य की नाक ऊंची होती है उसका चाल चलन बहुत अच्छा होता है और जिसकी नाक हाथीकी नासिकाके समान होती है वह मनुष्य सुखी और बहुधनी होता है तथा जिसकी नाक । सूखी होती है वह बहुत समयतक जीता है ॥ ७९ ॥ | तिलपुष्पतुल्यनासः शुकनासो भूपतिर्मनुजः ॥ आट्योग्रवक्तनासो लघुनासो शीलधर्मपुरः ॥८०॥ अर्थ-तिलके फूलके समान अथवा शुक (सुवा) के समान नाक जिसकी हो वह मनुष्य राजा होता है और जिसकी टेढी नाक होती है वह धनवान होता है तथा जिसकी नाक छोटी होती है वह गुणधर्ममें तत्पर होता है ॥ ८० ॥ | नैवलक्षण। हारतालाभैर्नयनैर्जायन्ते चक्रवर्तिनो नियतम् ॥ नीलोत्पलदलतुल्यैर्विद्रोसो मानिनो मनुजाः ॥८१॥ अर्थ-जिनके नेत्र हरतालके रंगके समान होते हैं वे पुरुष चक्र- वर्ती राजा होते हैं और जिनके नेत्र नील कमलदलके समान हों वे पुरुप विद्वान् और मानी होते हैं ॥ ८१ ॥ सेनापतिर्गजाक्षश्चरजीवी जायते सुदीर्घाक्षः ॥ भाषाटीकासहितम् ।। होता है अर्थात् बहुत कालतक जीता है, जिसके नेत्र लम्बे चौड़े होते हैं वह भोगी होता है, जिसके नेत्र कबूतरके नेत्रोंके समान हों वह पुरुष कामी होता है ॥ ८२॥ लाक्षारुणैर्नरपतिर्नयनैर्मुक्तासितैः श्रुतज्ञानी॥ | भवति महार्थः पुरुषो मधुकांचनलोचनैः पिङ्गैः॥८३॥ अर्थ-लाखके रंगके समान लाल नेत्र जिसके हों वह मनुष्य राजा होता है और जिसके नेत्र मातीके समान श्वेत वर्ण हों वह पुरुष शास्त्रका जाननेवाला होता है, जिसके नेत्र पीले और शहद व सोनेके रंगके समान हों वह पुरुष बहुत धनी होता है ॥ ८३ ॥ बहुवयसो धूम्राक्षाः समुन्नताक्षा भवन्ति तनुवयसः ॥ विष्टब्धवर्तुलाक्षाः पुरुषा नातिक्रमन्ति तारुण्यम्॥८४॥ अर्थ-जिसके नेत्र धूम्र वर्ण ( धुमैले ) होते हैं वे पुरुष बहुत आयुवाले होते हैं और जिनकी आंख झुकी हुई होती है वे थोडी आयवाले होते हैं तथा जिनके नेत्र ऐंठ अकडे अथवा गोल होते हैं वे पुरुष तरुणाईका उल्लंघन नहीं करते हैं अर्थात् जवानीसे पह- लेही मृत्युको प्राप्त होते हैं ॥ ८४ ॥ श्यावदृशां सुभगत्वं स्निग्धदृश भवति भूरिभो- गित्वम् ॥ स्थलदृशां धीमत्त्वं दीनदृश धनविही- नत्वम् ॥ ८५ ॥ अर्थ-जिसके नेत्र धूमले हों वह पुरुष भाग्यवान होता है। जि- सके नेत्र चिकने हों, वह पुरुष बहुत भोग भोगनेवाला होता है । जिसके नेत्र मोटे हों वह पुरुष बुद्धिवान् होता है तथा जिसके नेत्र दीन दृष्टिवाले हों वह मनुष्य धनहीन होता है ॥ ८५॥ भागी विस्तीर्णाक्षः कामी पारावताक्षोऽपि ॥८२॥ अर्थ-जिस मनुष्यके नेत्र हाथीके नेत्रवाले होवें वह मनुष्य सेना पात होता है और जिसके नेत्र बहुत बड़े इवें तो वह दीघजाव।।